बीते रविवार को प्रधानमंत्री ने बोर्ड परीक्षा में शामिल होने वाले छात्र-छात्राओं को ’स्माइल मोर, स्कोर मोर (अच्छी मुस्कान, अच्छे अंक)’ का मंत्र दिया। निसंदेह यह वक्त की जरूरत भी है। विशेषकर तब जब परीक्षाओं के दौरान चुनाव का शोरगुल भी है। हालांकि चुनाव आयोग ने भी इसका ख्याल रखा है और आदेश दिया है कि रात दस बजे से सुबह छह बजे तक लाउडस्पीकर आदि पर प्रचार नहीं किया जा सकता। बावजूद इसके दिक्कतें और भी हैं। मसलन, चुनाव ड्यूटी में शिक्षकों की तैनाती की गई है। ऐसे में बच्चों के लिए चुनौती और भी बढ़ जाती है। लेकिन इस चुनौती से पार पाया जा सकता है, बस थोड़ा सा धैर्य और ध्यान की आवश्यकता है। चुनाव मैदान में उतरे प्रत्याशियों को भी चाहिए कि वे इस बात पर गौर करें कि बच्चों की साल भर की मेहनत के परिणाम पर पानी न फिरे, इसका ध्यान वे भी रखें। दशक भर से अंकों की होड़ छात्र-छात्राओं में कई तरह की मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा कर रहे हैं। अभिभावकों की उम्मीदों का दबाव इसमें और ज्यादा बढ़ोत्तरी करता है। जाहिर है कि परीक्षाओं के दौरान भूमिका सिर्फ बच्चों की नहीं, अभिभावकों की भी हैं। अभिभावकों को समझना होगा कि अपेक्षाएं करना गलत नहीं, लेकिन अपेक्षा को लेकर उपेक्षा बच्चे की सेहत के लिए ठीक नहीं है। इस वक्त अभिभावकों को दायित्व इस मायने में बढ़ जाता है कि वे अभिभावक के स्थान पर बच्चे के सहयोगी नजर आएं। परीक्षा के तनाव से बचने के लिए उस अच्छी नींद, पढ़ाई के बीच में ब्रेक और पौष्टिक आहार की जरूरत होती है। तनाव के कारण भूख कम लगना कई तरह की समस्याओं को जन्म दे सकता है, लेकिन माता-पिता दोस्त जैसा व्यवहार करें तो बच्चों के लिए राह आसान हो जाएगी। परीक्षा के बाद कुछ बातें चुनाव को लेकर भी। बोर्ड परीक्षा में शामिल होने जा रहे कई बच्चे पहली बार वोटर भी हैं। यह अच्छा और जिम्मेदार नोगरिक बनने की पहली सीढ़ी है। जाहिर है कि यह समय है कर्तव्य बोध का। कहने में गुरेज नहीं कि बात चाहे पढ़ाई की हो या चुनाव की दायित्व और अधिकार में संतुलन में संतुलन रखना ही होगा। अंत में यही कहा जा सकता है कि ’सभी चुनें, सही चुनें’ जैसा सूत्र वाक्य जितना मतदाता के लिए महत्वपूर्ण है उतना ही बोर्ड परीक्षार्थियों के लिए भी जरूरी है।
साभार - दैनिक जागरण
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