सरकारी शिक्षा की गुणवत्ता एक दिवास्वप्न


उत्तराखंड को अस्तित्व में आए 16 साल का वक्त हो चुका है, लेकिन भविष्य की तस्वीर  अब तक नहीं बदली है। राज्म में कदम-कदम पर सरकारी स्कूल खुलने के बावजूद गुणवत्तापरक शिक्षा अभी भी दिवास्वप्न बनी हुई है। प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन की एनुअल स्टेटस आफ एजुकेशन रिपोर्ट यानि असर, सूबे की शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलने के लिए काफी है। 2016 की इस रिपोर्ट पर नजर दौड़ाएं तो तस्वीर में रत्तीभर भी बदलाव नहीं आया है। हालांकि, 2010 से 2016 आते-आते स्कूलों का नामाकंन तो बढ़ा, लेकिन स्थिति ये है कि 40 फीसदी छात्रों की शैक्षिक योग्यता गुणवत्ता औसत से कम है। यानि अभी भी बड़े सुधार की आवश्यकता हैं। असर की रिपोर्ट पर गौर करें तो शब्द तो छोड़िये, कक्षा एक से कक्षा आठ तक के सैकड़ों बच्चे ककहरा भी ठीक से नहीं पहचान पाए। गुणा-भाग में तो नैनिहाल पिछडे हैं तो हिन्दी-अंग्रेजी पढ़ने में भी फिसड्डी साबित हो रहे हैं। रिपोर्ट में ये भी खुलासा हुआ है कि कई सरकारी स्कूलों में गुरूजी की उपस्थिति बच्चों से भी कम है। राज्य में प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों की संख्या बीस हजार से अधिक है और छात्र-छात्राओं की तादाद में 17 लाख से ज्यादा। विडंबना यह है कि इसमें शिक्षकों के करीब 4000 पद रिक्त हैं। आंकड़ों को परखें तो प्रदेश में महज 25 से 30 फीसद स्कूल ही छात्र-शिक्षक अनुपात के पैमाने पर खरे उतरते हैं। ऐसे में शैक्षणिक गुणवत्ता की कल्पना करना कठिन नहीं है। संसाधनों के मामले में भी सरकारी स्कूलों की स्थिति दयनीय है। स्वच्छ भारत मिशन के बावजूद करीब तीस फीसदी स्कूलों में आज तक शौचालय की सुविधा नहीं है और इतने ही विद्यालयों में पीने के पानी की सुविधा नहीं जुटाई जा सकी। 45 प्रतिशत स्कूलों में सुरक्षा दीवार नहीं बनाई जा सकी। इसमें से ज्यादातर पहाड़ी इलाकों में है। ऐसे इलाके जहां हर समय वन्य जीवों का खौफ बना रहता है। हैरत नहीं कि अभिभावक अपने नैनिहालों को सरकारी स्कूल में भेजने की बजाए ज्यादा शुल्क चुकाकर भी प्राइवेट स्कूलों की शरण ले रहा है। सरकार भले ही दावा करें कि शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए बजट में बेहतर व्यवस्था की गई है, लेकिन सूखा धरातल इस पर शायद ही यकीन करने दे। अब चिंतन इस पर होना चाहिए कि कमी धन की है या मंशा की। आखिर सर्वाधिक योग्य और प्रशिक्षित स्टाॅफ होने के बावजूद सरकारी शिक्षा रसताल में क्यों जा रही है। दरअसल, इसके लिए आंकड़ो की नहीं, आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता हैं।
                    


साभार -दैनिक जागरण

Comments (0)

Please Login to post a comment
SiteLock
https://www.google.com/url?sa=i&url=https%3A%2F%2Fwww.ritiriwaz.com%2Fpopular-c-v-raman-quotes%2F&psig=AOvVaw0NVq7xxqoDZuJ6MBdGGxs4&ust=1677670082591000&source=images&cd=vfe&ved=0CA8QjRxqFwoTCJj4pp2OuP0CFQAAAAAdAAAAABAE