मैं इस दिन पुस्तक मेले में रहूँगा, आप भी आएं, मैं हर दिन मेले में रहूँगा, आप आ रहे हैं न? मैं इन-इन स्टॉल पर इस -इस समय रहूँगा, आप भी पहुंचे ....... जो काम मेले वालों का था, उसे लेखक किए जा रहे हैं और सन्देश पर सन्देश भेजे जा रहे हैं कि मैं पूरे समय मेले में रहूँगा, आप मेरी हस्ताक्षर वाली प्रति खरीदकर ले जाना जी, इंतजार रहेगा। पिछले मेले में ऐसा ‘होल टाइमर’ लेखक नहीं था। यह इसी मेले ने बनाया है। कुछ पहले तक का लेखक थोड़ा शर्मीला-झिझकीला था, ससंकोच बताता था कि मैं आज आ रहा हूँ, आप भी रहें, तो अच्छा रहेगा। लेकिन इन दिनों बना लेखक ‘ऐलानिया‘ लेखक है, जो सबको बताता फिर रहा है कि मैं मेले में हर दिन पूरे समय रहूंगा, आप भी पहुंचें और मेरी सिग्नेचर वाली किताब लें और धन्य हों! यूँ पहले वाले कुछ लेखक भी इस गलतफहमी में जीते थे और हाथ में कलम लेकर प्रकाशक के ठीए पर पूरे दिन बैठे रहते थे कि विदेशी लेखकों के पाठकों की तरह उनके पाठक भी आएंगे और उनकी किताब पर उनके सिग्नेचर लेकर धन्य-धन्य होंगे। एक बार एक नामी लेखक इसी गलतफहमी में पूरे दिन कलम संभाले बैठा रहा मगर एक पाठक न फटका। इस पुस्तक मेले में लेखकों की बची-खुची हिचक भी पिचक गई है। इस बार का लेखक तो बाजाप्ता ऐलान करके मेले में आ रहा है कि इस बार वह मेले में हर दिन होगा, उसकी किताब होगी, आप आएं और उसकी हस्ताक्षरित प्रति ‘विद सेल्फी‘ लेकर जाए! इसे कहते हैं आज के हिंदी लेखक का नया आत्मविश्वास। यह लेखक मानता है कि एक कॉपी बिके न बिके, कोई पढ़े न पढ़े, लेकिन सपना देख, तो बड़ा देख। थिंक बिग, बी बिग। जिसका हल्ला, उसका मोहल्ला इसलिए हल्ला मचा। संकोच छोड़ और खुले आम कह कि मैं आ रहा हूँ , जैसे कोई अमिताभ बच्चन हो, शाहरूख खान हो, कार्तिक आर्यन हो कि वह पंहुचा नहीं, और उसके चाहने वालों की भीड़ उमड़ी नहीं। सोशल मीडिया ने हर लेखक को सेलिब्रिटी बनने का अवसर दिया है। लेखक हो न हो, वह अपने को सेलिब्रिटी से कम नहीे समझता और चाहे एक किताब न बिके, लेकिन पूछने पर यही कहता नजर आता है, आई वाज मॉब्ड......उस दिन भीड़ ने मुझे घेर लिया.... सिग्नेचर करते-करते थक गया.... किताब ‘आउट ऑफ स्टाक’ हो गई। मैं अपने पाठकों का शुक्रगुजार हूँ।मार्केटिंग का काम प्रकाशक का था, उसे लेखक कर रहा है। इस मानी में आज का रचनाकार जितना लेखक है, उससे अधिक वह सेल्समैन है। वहीं अपना प्रायोजक, प्रचारक और पाठक है। पुस्तक मेले में स्टॉलों के बीच बैठने की जगह कहां? तब भी अपना लेखक कहे जा रहा है कि वहीं रहूँगा। बनकर रहूँगा सेलिब्रिटी लेखक। सेलिर्बिटी बनना है, तो जितना है, उससे अधिक दिखाना-बताना है कि इस बार जितना मैं बिका, दूसरा कोई न बिका, जितना मैं टिका, दूसरा कोई न टिका। टिकोगे, तो बिकोगे! इसलिए चल मेले मे! सोचता हूँ कि अब सबको बता ही दूं कि मैं भी मेले में आ रहा हूं और हर दिन सुबह से शाम तक हिंदी पवेलियन में ही मिलूंगा, ताकि मेरे अनगिनत चाहने वाले मेरे लिए लाइन तोड़ते दिखें और मैं सुबह से शाम के आठ बजे तक किताबों पर सिग्नेचर करता हुआ दिखूं और जब मीडिया वाले पूछे, तो कहंू कि भई, मैं तो अपने पाठकों और इस मेले के लिए जीता हूँ और अपना बोरिया-बिस्तर भी यहीं ले आया हूँ, ताकि मेरा कोई पाठक खाली हाथा न जाए। हिंदी वाले जानें तो कि एक लेखक ऐसा भी हुआ, जो मेले में ही रहा, मेले में ही जिया, मेले में ही मरा!
जिस तरह से पंडित हजारी प्रसाद जी के लिए कभी आम फिर से बौराए थे, उसी तरह आज मैं भी बौरा गया हूँ ।
लेखक-सुधीर पचौरी
साभार-हिन्दुस्तान
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