कोरोना महामारी से कैसे बचा जाएं ये सवाल सबके जहन में हैं।

कोरोना नियमों की अंदेखी का असर दिखने लगा है। देश में कोरोना का पीक समय चल रहा है। लेकिन कोई भी नियमों का पालन करने को तैयार नहीं हैं। मानों कोरोना का डर खतम सा हो गया है। शुरुआत में जो डर कोरोना का लोगों में था, वही डर इंसानों में फिर से लाना होगा। नहीं तो अंजाम भुगतने के लिए सबको तैयार रहना होगा। मुझे कुछ नहीं होगा इन डाॅयलोंगो को सभी को पीछे छोड़ना होगा। जो ऐसी बचकानी हरकते करके नियमों की अंदेखी कर रहें हैं। उन सभी को जरा उन लोंगों से पूछना चाहिए जो शमशान की कतारों में खड़े होकर किसी अपने का अंतिम संस्कार करने का इंतजार कर रहें हैं। हालात यह हैं कि कहीं-कहीं तो अंतिम संस्कार के लिए अपने तक नसीब नहीं हो पा रहें हैं। और कहीं लाशे सड़कों, अस्पतालों और शव-गृह में पड़ी हैं।


सरकारें बंद दफ्तर में रह कर नियम तो बना रहीं हैं, लेकिन उसका पालन करवाने में फिसड़ी साबित हो रही हैं। जब तक बंद कमरें में बैठे नेता, अधिकारी, और कर्मचारी जमीन पर नहीं उतरेंगे। तब तक कोरोना की चेन को तोड़ना नामुमकिन सा है।


बड़े-बड़े शहरों में कोरोना की दहशत इतनी ज्यादा है कि सरकारें फिर से लाॅकडाउन लगाने पर विचार कर रहीं हैं। लाॅकडाउन लगाना क्या उचित रहेगा। इसके परिणाम सभी जानते हैं। फिर भी लाॅकडाउन लगाने की कोशिश की जा रही है। गरीब को डर है कि कहीं लाॅकडाउन न लग जाएं तो अमीर को डर है कि कहीं कोरोना ना हो जाएं। चिंता सभी को हैं यदि कोरोना हो जाता है तो इंसान बीमारी से मर जाएगा और यदि लाॅकडाउन लग जाएगा तो इंसान गरीबी से मर जाएगा।     (तेजपाल सिंह बिष्ट)

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