एकल शिक्षकों के बलबूते चलते कई घरेलू स्कूल

राष्ट्रीय राजमार्ग के खंडहर की धूल में श्वान के तीन बच्चे धूल से लथपथ हो रहे थे। मैंने उन्हें कार से दखा और कार आगे निकल गई। पिछले हफ्ते इसी स्थान पर एक और पिल्ले को मैने देखा था, वह एक सांप को जबड़े में जकड़ा हुआ था।


खैर, वहां राष्ट्रीय राजमार्ग से कुछ किलोमीटर दूर ग्रामीण सड़कें कुछ बेहतर हैं। गांव में पहुंचते ही गली संकरी हो जाती है और हमें अपनी गाड़ी को रोककर पैदल चलना पड़ता है। हम जिस घर पहुंचते हैं, वह एक बड़े संयुक्त परिवार के लिए बने घरों का समूह है। हमारे सामने ही आंगन में दो औरतें दाखिल हुई। वे एक घर के बरामदे में गई, जहां 21 बच्चे अपनी शिक्षिका को घेरे बैठे थे। घर की कुछ महिलाएं खड़ी देख रही थीं। दोनों महिलाओं ने बच्चों से कुछ आक्रामक ढंग से बात की। लेकिन बच्चों ने इस पर ध्यान नहीं दिया। जल्द ही वे महिलाएं चिड़चिड़ी आवाज में शिक्षिका को निशाना बनाने लगीं। दरअसल, वे दोनों महिलाएं किसी अन्य स्कूल से आई थीं और वहां मौजूद कुछ बच्चों को अपने स्कूल का छात्र बता रही थीं। कुछ देर बाद वे वहां से लौट गईं।


दस मिनट बाद वे फिर आईं। इस बार उनके साथ एक पुरुष भी था। उस पुरुष ने शिक्षिका पर जुबानी हमला बोल दिया। शिक्षिका ने कुछ मिनट के बाद कहा, ‘अगर आपको कोई समस्या है, तो आप इनके माता-पिता से बात कीजिए। तब तक यह सब देख रही घर की एक महिला बोल पड़ी, ‘वह अप्रैल से ही रोज पढ़ाने आती हैं, जब से स्कूल बंद है। तुम लोग तब कहां थे?’ उनकी आवाज में कोई लांछन नहीं है और न ही झगड़ने का भाव। वह आगे कहती हैं, ‘तुम्हारे अपने प्रदेश में तो कुछ अच्छा नहीं होता, और यहां कुछ काम होता है, तो ईष्र्या करते हो’ तब बिना कुछ कहे पुरुष और महिला लौट गए।


दरअसल, यह गांव दो राज्यों में फैला हुआ है। प्रत्येक राज्य की ओर गांव में एक-एक सरकारी स्कूल है। एक राज्य के स्कूल की शिक्षिका ने तालाबंदी शुरू होने के कुछ दिनों बाद ही यानी अप्रैल में गांव का दौरा शुरू कर दिया था। जरूरतमंद परिवारों को राशन दिया। घर-घर जाकर बच्चों के शिक्षण समूह बनाने का काम किया। वह जानती थीं कि उनके छात्रों को इस कठिन समय में सहारे की जरूरत है। उनका काम आगे बढ़ा और अधिक संगठित हुआ। वह शिक्षिका उस बरामदे जैसी खुली जगह में हर दिन सभी छात्रों को पढ़ाती रहीं, जबकि किसी ने उन्हें ऐसा करने के लिए कहा नहीं था।


शिक्षिका की तरह ही प्रतिबद्ध एक स्थानीय शिक्षा अधिकारी ने जब उनके प्रयासों के बारे में सुना, और गांव जाकर उनका काम देखा, तो फिर उस क्षेत्र के अन्य शिक्षकों को भी उन्होंने वैसा ही करने के लिए कहा। आज उस छोटे से इलाके में 150 से अधिक शिक्षक हैं, जो समान रूप से अपने छात्रों के साथ शिक्षा सेवा में लगे हुए हैं। इसके अलाव 200 अन्य शिक्षक भी हैं, जो कमोबेश ऐसे ही प्रयास में लगे हैं।


उस शिक्षिका के प्रयासों का एक परिणाम यह हुआ है कि अब माता-पिता ने अपने बच्चों को दूसरे राज्य के स्कूल से स्थानांतरित कराना शुरू कर दिया है। देश के राज्यों के बीच फर्क है, लेकिन जहां भी अच्छा काम हो रहा है, लोग वहां जा रहे हैं। शिक्षा और सुविधाओं के ऐसे अंतर पूरे देश में व्याप्त हैं। ऐसे अंतर रोजमर्रा की जिंदगी में भले ही न दिखते हों, लेकिन सार्वजनिक सेवाओं और अन्य चीजों में नजर आ जाते हैं। जो अच्छे काम हो रहे हैं, वह इस देश में मौजूद संभावनाओं के प्रमाण हैं। इस देश में एकजुूटता के साथ रहना संभव है। यहां जो खराब है, उसे यहीं हैं कि हमारे यहां सार्वजनिक शिक्षा बहुत प्रतिकूल हालात में भी काम कर सकती है। और बहुत कुछ अच्छा हो भी रहा है।


हमने उस गांव से लौटते समय अपनी गाड़ी वहीं राष्ट्रीय राजमार्ग के खंडहर के पास रोक दी है। कुछ ही पल में साफ हो गया है कि श्वान के बच्चे खतरे में नहीं हैं, उन्होंने सांप के प्राण हर लिए हैं। मैं हर साल इस जगह को देखता हूं। इनत माम वर्षों में यहां धूल उतनी ही महीने है और राष्ट्रीय राजमार्ग भी उतना ही टूटा हुआ है। लेकिन मुझे वहां पर जाना पसंद है, जीवन पर जीवन को परत-दर-परत और जमीन से जुड़कर खुद अपना अर्थ खोजने के लिए। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
लेखक- अनुराग बेहार (सीईओ, अजीम प्रेमजी फाउंडेशन)
साभार- हिन्दुस्तान

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