आधुनिक इतिहास में शिक्षा के पारंपरिक ढांचे को इतना तगड़ा झटका कभी नहीं लगा था। यूनेस्को के अनुसार, दुनिया भर में कोविड-19 का बुरा असर लगभग 120 करोड़ विद्यार्थियों पर पड़ा, जिनमें 32 करोड़ भारत से थे। इनमें 28 करोड़ विद्यार्थियों का संबंध स्कूली शिक्षा और शेष चार करोड़ का संबंध उच्च शिक्षा से था। लगभग दस महीने तक देश के 32 करोड़ नौनिहाल व नौजवान घरों में कैद रहने और पढ़ाई-लिखाई, खेलकूद से अलग-थलग रहने को मजबूर हो गए थे। पिछले एक साल तक विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालयों के परिसरों में सन्नाटे और खौफ का जैसा नजारा देखा गया, वैसा भारत की शिक्षा के इतिहास में कभी नहीं देखा गया था। शिक्षा के मंदिरों में चहल-पहल लौटने लगी है, लेकिन अभी भी बहुत कम विद्यार्थी आ रहे हैं। इसका एक कारण अभिभावकों के मन में बैठी आशंका है कि कहीं उनके बच्चे कोरोना का शिकार न हो जाएं। दूसरी ओर, अभी भी आधा दर्जन से ज्यादा राज्यों में कोरोना प्रकोप तेजी से बढ़ता देखा जा रहा है। लोग आशंकित हैं कि क्या शिक्षा का नया सत्र भी कोरोना से प्रभावित होने जा रहा है?
कोरोना की वजह से भारत के शिक्षा जगत को कितनी क्षती हुई है, इसका अंदाजा लगाना अभी मुश्किल होगा। ऑनलाइन शिक्षा के शैक्षणिक हानि की कितनी भरपाई की है, यह देखना भी शेष है। 2019 के एक सरकार सर्वेक्षण के अनुसार, देश में सिर्फ 24 प्रतिशत परिवारों के पास इंटरनेट सुविधा है। ग्रामीण जगत में सिर्फ चार प्रतिशत परिवार इंटरनेट से जुडे़ हैं। जनवरी, 2021 में अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी ने देश के पांच राज्यों के 1137 सरकारी स्कूलों के 16067 बच्चों की सीखने की योग्यता पर कोरोना के प्रभाव अध्ययन करने के लिए एक सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण के नतीजे बताते हैं, कक्षा दो में 67 प्रतिशत, कक्षा तीन में 76, कक्षा चार में 85 और कक्षा पांच व छह में 89 प्रतिशत बच्चे गणित में कमजोर हो गए हैं।
करीब 28 करोड़ विद्यार्थियों की भावी आर्थिक हानि से ज्यादा नुकसान उनक मानसिक स्वास्थ्य और सामाजीकरण को हुआ है। मोबाइल पर 3-4 घंटे तक शिक्षक की आवाज सुनकर या वीडियो देखकर ऑनलाइन पढ़ाई करने से उनके मानसिक स्वास्थय पर निश्चित रूप सु बुरा असर पड़ा है। जिस समय देशव्यापी लाॅकडाउन की घोषण की गई थी, उच्च शिक्षा के लिए वह निर्णायक समय था। कई परीक्षाओं और प्रवेश पर उसका सीधा असर पड़ा। ऐसा लगने लगा कि कहीं 2020-21 का शैक्षणिक सत्र शून्य सत्र न बन जाए।
हालांकि, उस समय उच्च शिक्षा में एक नए दौर की शुरुआत भी हुई। भारत की शिक्षा में ऑनलाइन शिक्षण का सार्वजनीकरण मजबूरी या एकमात्र विकल्प के रूप में हुआ। भारत की शिक्षा ने एक लंबी छलांग लगा दी। शिक्षा जूम, गूगल शीट, माइक्रोसाॅफ्ट टीम, फेसबुक लाइव, यूट्यूब लाइव, वेबैक्स, स्काइप जैसे प्लेटफाॅर्मों पर आधारित हो गई। 1917 की सोवियत क्रांति के बारे में सोवियत नेता लेनिन ने कहा था, ‘जो बड़े परिवर्तन 10 साल में नहीं हो पाते, वे कभी-कभी दस दिन में हो जाते हैं।’ भारत के शिक्षा जगत में ऑनलाइन शिक्षा के उदय को इसी रूप में देखा जाना चाहिए। इसके सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं को एक साथ देखा जाना चाहिए। शिक्षकों और विद्यार्थियों ने पढ़ने-लिखने के लिए भले ही मजबूरी में स्मार्टफोन व कम्प्यूटर प्रयोग करना सीखा हो, भविष्य में इससे शिक्षा की प्रगति के अनगिनत द्वारा खुलेंगे। एक बड़ी चुनौती है कि गरीब व ग्रामीण विद्यार्थियों को कैसे पढ़ाई छोड़ने से रोका जाए?
यह कहना गलत होगा कि कोरोना से भारत में शिक्षा जगत को हुई अतुलनीय क्षति से कोई बचाव हो सकता था। ऐसी महामारियां और प्राकृतिक आपदाएं भविष्य में भी आती रहेंगी। क्या हमारे विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय आपात स्थिति में पढ़ाई-लिखाई की व्यवस्था को यथावत चलाए रखने के लिए तैयार हो पाए हैं? क्या हमारे शिक्षक व विद्यार्थी ऑनलाइन तरीके से काम करने में सक्षम हो पाए हैं? क्या सरकारी बजट में शिक्षा को हुई क्षति की भरपाई के लिए समुचित वित्तिय प्रावधान हो पाए हैं? जरूरी है कि अगले पांच वर्षों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करते हुए हम ध्यान रखें कि शिक्षा को हुई भयंकर क्षति की पूर्ति जल्द से जल्द हो। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
लेखक- हरिवंश चतुर्वेदी
साभार- हिन्दुस्तान
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