शुक्रवार को संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित अनुराग बेहर का लेख पढ़ा। स्कूली शिक्षा न केवल बच्चों के आत्मविश्वास को बढ़ाती है, बल्कि पूरे जीवन के लिए उन्हें तैयार भी करती है। कोरोना के कारण पूरा वर्ष बच्चे स्कूलों से, विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों से ओर कक्षाओं से दूर रहे। उनकी दिनचर्या में पूरी तरह से बदलाव देखा गया है। पढ़ाई के घंटों में काफी कमी हुई है। स्थिति अब भी सामान्य नहीं हुई है। अब भी बहुत सी जगहों पर बच्चे केवल एक-दो घंटे पढ़ पा रहे हैं, क्योंकि स्कूल सुचारू रूप से नहीं शुरू हुए हैं और अभिभावक अपने-अपने काम पर जाने लगे हैं। कोरोना के इस दौर में बच्चे ने केवल पढ़ाई से दूर हुए, जिनसे उन्हें अपनी प्रतिभा निखारने और आत्मविश्वास में बढ़ोतरी के अवसर मिलते। बच्चों के सर्वागीण विकास के लिए जरूरी है कि अध्यापक ही नहीं, समाज का हर व्यक्ति सच्चे मन से अपना कार्य करें, तभी समाज का भी संपूर्ण उत्थान हो सकेगा।
हरीश कुमार शर्मा, दिल्ली।
साभार - हिन्दुस्तान
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