अगर सामान्य वक्त होता, तो देश भर के माध्यमिक स्कूलों के बच्चे अगले कुछ महीनों में होने वाली वार्षिक परीक्षा की तैयारियों में जुटे होते। लेकिन यह साल ही अलग है। सरकार मार्च-अप्रैल तक चालू शिक्षा सत्र को पूरा करना चाहती है। कोविड-19 महामारी के कारण शैक्षणिक कार्यदिवसों का जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई के लिए पाठ्यक्रम में एक-तिहाई की कटौती कर दी गई है। लेकिन यह स्पष्ट होता जा रहा है कि छोटा कोर्स भी पूरा नहीं होने जा रहा। जैसा कि इस अखबार ने सोमवार को एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, आभासी (वर्चुअल) पढ़ाई देश के दो-तिहाई स्कूली बच्चों के लिए अप्रभावी रही है। यूनिसेफ नेपाल द्वारा अगस्त में किए गए एक सर्वे से पता चलता है कि देश के दो-तिहाई स्कूली विद्यार्थी दूरस्थ शिक्षा के अवसरों से वंचित हैं। पठन-पाठन की इस प्रक्रिया में भारी विषमता रही, क्योंकि कुछ विद्यार्थियों ने तो ऑनलाइन पढ़ाई की, जबकि दूसरे तमाम बच्चे, खासकर काठमांडू घाटी से बाहर के विद्यार्थियों ने ऑफलाइन पढ़ाई ही की। अलग-अलग श्रेणियों और भिन्न-भिन्न संस्थानों ने यह सूचित किया है कि ऑनलाइन पद्धति से बच्चे अपेक्षाकृत कम सीख पाए हैं। अभिभावकों का मानना है कि उनके बच्चे अगली कक्षा में जाने लायक पढ़ाई नहीं कर सके। उन्हें लगता है कि शैक्षणिक सत्र को कुछ महीने आगे बढ़ाना ही ठीक होगा। इस तरह, यह काफी भेदभावपूर्ण परीक्षा होने जा रही है।
एसईई रिजल्ट भी सही नहीं थे, क्योंकि देश भर के अनेक स्कूलों को अपने बच्चों को अनुकूल ग्रेड दिए जाने को लेकर संदेह था। लेकिन वह भेदभाव थोपने से फिर भी बेहतर था, क्योंकि देश के काफी सारे विद्यार्थी आॅनलाइन पढ़ाई का फायदा उठाने से वंचित रह गए थे। अगले चार-पांच महीनों में यदि हालात में कुछ तब्दीली आती भी है, क्योंकि वैक्सीन की प्रभाव-क्षमता साफ होती जा रही है, तब भी स्थिति आशातीत रूप से बदलने वाली नहीं है। ऐसे में, अहम यह है कि हम विद्यार्थियों को परीक्षा की स्थिति के बारे में पहले से सूचित करें। हम उन्हें पुरानी पीढ़ी की सुस्ती का शिकार नहीं बनने दे सकते।
द काठमांडू पोस्ट, नेपाल
साभार- हिन्दुस्तान
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