केंद्रीय शिक्षा मंत्री शफकत महमूद की सदारत में सभी सूबों के शिक्षा मंत्रियों की बैठक में यह फैसला किया गया कि मुल्क के तमाम स्कूल 24 दिसंबर तक बंद रहेंगे। उसके बाद 10 जनवरी तक सर्दियों की छुट्टियां तय हैं। यह फैसला स्वास्थय विशेषज्ञों की इस पड़ताल के आधार पर लिया गया है कि स्कूलों में कोरोना संक्रमण की दर में 82 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इसका मतलब है कि 24 दिसंबर तक एक बार फिर स्कूलों को ऑनलाइन क्लास लेनी पडें़गी और कई सारे स्कूलों के लिए यह काफी कठिन होगा, खासकर सरकारी स्कूलों के लिए। इसका एक अर्थ यह भी है कि ऑनलाइन पढ़ाई कराना उन शिक्षकों के लिए भी काफी दुश्वार होगा, जिन्होंने इस नई पद्धति का प्रशिक्षण हासिल नहीं किया है। दूसरी, तरफ, जरूरी यह भी है कि हम अपने बच्चों को कोविड- 19 से बचाएं और उन्हें इसका कैरियर बनने से रोंके, क्योंकि बहुत मुमकिन है कि उन्हें इसका इलहाम भी न हो और वे अपने परिवार तक इस वायरस को पहुंचा दें। यह एक वैश्विक मसला है। ब्रिटेन में भी कुछ इलाकों में स्कूलों को बंद कर दिया गया है, जबकि शेष इलाकों में इसकी समीक्षा की जा रही है। अमेरिका व यूरोपिया देशों के काफी स्कूल भ आॅनलाइन पढ़ाई करा रहे हैं। जाहिर है, इसके पीछे सोच यही है कि जिंदगी शिक्षा से ज्यादा जरूरी है, और पढ़ाई-लिखाई में कुछ महीने का नुकसान झेला जा सकता है। फिर आगे चलकर दोहरे प्रयासों से इसकी काफी भरपाई की जा सकती है। इसके लिए गरमियों की छुट्टियां रद्द करने समेत दूसरे उपाय किए जा सकते हैं। मगर जिंदगी को दोबारा नहीं लाया जा सकता। ऐसे हालात में शायद सुरक्षित रास्ता यही हैं कि स्कूल बंद कर दिए जाएं। तब तो और, जब हमारे यहां कोरोना संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और हर रोज कई लोगों की जान जा रही है। अभिभावकों को बच्चों की पढ़ाई के नुकसान की चिंता है। अपनी जगह य वाजिब चिंता है। मगर हमे यह भी मानना पडे़गा कि हमारे स्कूलों के पास इतने संसाधन नहीं हैं कि वे अपने यहां मानक दिशा-निर्देश लागू कर सकें। इसलिए स्कूलों को बंद करना जरूरी है।
द न्यूज पाकिस्तान
साभार हिन्दुस्तान
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