शिक्षा की ज्योति

आठ महीने हो चुके हैं, लेकिन स्कूल अब तक नहीं खुल सके हैं। हाल-फिलहाल में इसकी उम्मीद भी नहीं लग रही हैं, जो शिक्षा क्षेत्र के लिए कतई शुभ संकेत नहीं है। इससे जुड़े असंगठित कर्मचारियों की दशा किसी से छिपी नहीं है, पर कोरोना काल में शिक्षा को आॅनलाइन पटरी पर चढ़ाकर सब निश्चिंत लग रहे हैं। इससे बच्चों का शैक्षणिक स्तर नीचे गिर रहा है। सोचने-समझने की क्षमता के साथ-साथ उनकी रुचि भी कम हो रही है। ऐसे में, जरूरी है कि हर शिक्षक पूरी आत्मीयता के साथ बच्चों से जुड़े और अभिभावक भी उनके प्रयासों को सराहें। प्रतिदिन अभिभावक का बच्चों के साथ समय बिताना और पढ़ाई से जुड़ी सार्थक चर्चा करना निहायत जरूरी है। बच्चों, अध्यापकों, अभिभावकों व शिक्षा क्षेत्र में जुड़े लोगों की एकजुटता, सकारात्मकता और ‘चरैवेति-चरैवेति’ का मूलमंत्र ही स्कूल न जाने की इस भारी कीमत की भरपाई कर सकता है। कोरोना की चुनौती के सामने बच्चों में शिक्षा की ज्योति जलाए रखना बहुत जरूरी है।


हरीश कुमार शर्मा, बख्तावरपुर गांव
साभार- हिन्दुस्तान

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