शिक्षा में सुधार को कोई शाॅर्टकट नहीं


 दुनिया में शायद ही कोई देश होगा, जो अपनी स्कूली शिक्षा में सुधार की कोशिश न कर रहा हो। कनाडा और फिनलैंड जैसे देश भी, जिनकी स्कूली व्यवस्था पहले से शानदार है, उसे और निखारने की चेष्टा कर रहें हैं। इन देशों को शिक्षा के प्रति अपने नजरिये में पूरा भरोसा है, और ये उसके बुनियादी उसूलों के प्रति समर्पित हैं अब ये देश उन बारीक त्रुटियों को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं, जिनके बारे में बहुत से मुल्कों ने सोचना शुरू भी नहीं किया होगा। इसके बाद एस्टोनिया व कोरिया जैसे देश हैं, जिनके पास काफी विकसित शिक्षा-प्रणाली है, लेकिन वे उसमें सुधार चाहते हैं, क्योंकि उनके खुद के आकलन में स्थिति पूर्णतः संतोषजनक नहीं है। इसके बाद वे ज्यादातर मुल्क है, जो अपने यहां के स्कूल सिस्टम से नाखुश हैं। वे सोचते हंै कि उनके यहां की स्कूली व्यवस्था में बुनियादी बदलाव की जरूरत है। ऐसा सोचने वाले मुल्कों में अमेरिका, ब्रिटेन व स्वीडन जैसे विकसित देशों से लेकर भारत, चीन व मलेशिया जैसे विकासशील देश शामिल हैं।
निस्संदेह, यह सामान्य सा वर्गीकरण है। और इससे इस मुद्दे के बेहद अहम पहलुओं का पता नहीं लगता, जैसे देशों की नाखुशी की वजह क्या है? इसमें कोई दोराय नहीं हो सकती कि स्कूली शिक्षा-व्यवस्था में सुधार की राह में काफी जटिलताएं हैं, जिसे हर देश और समाज को खुद महसूस करना चाहिए। सबके लिए एकसमान खाका खींचने की कोशिश अति-सरलीकरण और अति-अवरोध के जोखिमों से भरी होती है। अलबत्ता, स्कूली शिक्षा में सुधार के वैश्विक प्रयासों में जो कुछ चीजें एक समान हैं, उनमें से एक है स्कूली शिक्षा में शिक्षकों को महत्व और उसमें सुधार की जरूरत। शिक्षा के केन्द्र में हैं शिक्षक। और शिक्षक की इस केन्द्रीयता को लेकर चार तरह के विचार रहें हैं।
    पहली सोच तो यही है कि शिक्षकों को बेहतर काम के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, जो सुधार की राह प्रशस्त करेगा। दूसरी राय है कि ’बेहतर’ लोगों को शिक्षक बनाने के लिए आकर्षित किया जाए। तीसरा नजरिया है कि अच्छे शिक्षक तैयार करने की कोशिश हो, और चैथी राय है कि जो शिक्षक पहले से व्यवस्था में काम कर रहे हैं, उनकी क्षमताओं को निखारा जाय। दरअसल, अन्य कई वजहों के साथ शिक्षा की सामाजिक-मानवीय प्रकृति के कारण प्रोत्साहन वाला दृष्टिकोण विफल हुआ, क्योंकि यह स्थिति एक शिक्षक से यह अपेक्षा करती है कि वह सृजनशील, विशेषज्ञ, समान अनुभूति रखने वाला और नैतिक हो। यह शिक्षक का ऐसा आदर्श रूप है, जो तभी काम कर सकता है, जब कोई बेहद सामथ्र्यवान व्यक्ति अपनी अंतः प्रेरणा से यह काम करे। दरअसल, शिक्षा में सुधार के लिए हमें शिक्षकों के प्रशिक्षण और उनके पेशेवर विकास में निवेश करना होगा। शिक्षा में सुधार का दूसरा कोई शाॅर्टकट नहीं हैं।



                        लेखक-अनुराग बहर
                साभार-दैनिक हिन्दी हिन्दुस्तान

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