उत्तराखण्ड की शिक्षा व्यवस्था की तस्वीर जैसे ही जेहन में उभरती है तो सुबह-शाम ग्रामीण इलाकों की पगडंडियों पर बस्ता और तख्ती लटकाएं छोटे बच्चों के झुंड का अक्स दिख जाता है। आधुनिकता की दौड़ में अंग्रेजी स्कूल खुले और गांव में भी बसें बच्चों की स्कूल के लिए लेने और छोड़ने आने लगी। तख्ती स्लेट में बदली और स्लेट काॅपी में, निक्कर और फटा बुर्सत टाई शुदा ड्रेस कोड़ में तब्दील हो गया। गुरु जी प्रणाम की जगह गुड़ माॅर्निंग सर ने ले ली। देखते ही देखते शिक्षा प्रणाली की बुनियाद बदल गई लेकिन जो नही बदला वह है स्कूल जाकर शिक्षा ग्रहण करना। अब कोविड-19 महामारी के बाद सबको शारीरिक दूरी बनाए रखने की बाध्यता आन पड़ी है। ऐसे में विद्यार्थियों का स्कूल जाना मुमकिन नहीं हो रहा है। ऑनलाइन एजुकेशन या ई लर्निंग का सहारा लिया जा रहा है। सही भी है वर्तमान हालत में इससे अच्छा और कोई विकल्प भी तो नहीं है। संहसा इस बदलाव को हमारी सोच समझ और संसाधन आत्मसात नहीं कर पा रहे हैं। क्योंकि सदियों से पठन-पाठन की जो संस्कृति हमारे दिलों दिमाग में रची बसी थी उससे एक झटके में मुंह नहीं फेरा जा सकता है।
दीपक बिजल्वाण, देहरादून।
साभार जागरण
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