शिक्षकों की कमी का सवाल

शिक्षा बने अवसरों का माध्यम शीर्षक के अंतर्गत अतुल कोठारी ने शिक्षा के वैकल्पिक समाधानों पर गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया है। ऑनलाइन शिक्षा की महत्ता के साथ ही साथ उससे संबंधित समस्याओं पर भी विचार किया है। एक प्रमुख समस्या जिसका समावेश इस लेख में कम है वह है- शिक्षा की आधारशिला अर्थात शिक्षक। जिस उचच शिक्षा प्रणाली के विष मे विमर्श किया जा रहा है। उनके विश्वविद्यालयों में विषय विशेषज्ञों के ज्यादातर पद रिक्त है। स्वयं यूजीसी द्वारा प्रदत्त आंकड़ों में इस बात का जिक्र अनके बार किया गया है। ऐसे में ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली उन विद्यार्थियों के लिए भी वरदान साबित हो सकती है जिनके विवि में विषय विशेष्ज्ञ नहीं है, परंतु यहां एक विचारणीय बिंदु यह भी है है कि ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली हेतु प्रशिक्षित नहीं है। अतः ऑनलाइन कक्षाओं का संचालन ठीक से करने के लिए प्रशिक्षण कार्यशालाओं की नितांत आवश्यकता है। साथ ही सदि संभव हो तो यह प्रशिक्षण भी दोंनो विधाओं ऑनलाइन एवं ऑफलाइन में हो ताकि कम समय में ही अधिक शिक्षक प्रशिक्षित हो सकें। शिक्षकों के रिक्त पदों को यथाशीघ्र भरने को दो या अधिक चरणों में चलाने की दिशा में कदम उठाए जाएंगे तो शिक्षकों की कमी प्रमुख समस्या बनकर उभरेगी। उच्च शिक्षा के साथ ही साथ माध्यमिक शिक्षा में भी सप्ताह में दो दिन ऑनलाइन कक्षाओं का संचालन एक बेहतर विकल्प होगा, परंतु यहां पर भी शिक्षकों की कमी प्रमुख समस्या होगी। माध्यमिक विद्यालयों में अधिकतर विद्यालय एक या दो शिक्षकों द्वारा ही संचालित हैं। ऐसे में किसी भी विकल्प पर विचार करने से पूर्व शिक्षकों की भर्ती अनिवार्य रूप से करनी होगी। हमारा ध्येय सर्व शिक्षा होने के साथ-साथ गुणवत्ता परक एवं विधार्थियों तक ऑनलाइन शिक्षा के संसाधनों की उपलब्धता के क्षेत्र में ज्ञी यथाशीघ्र पहल करनी होगी, ताकि शिक्षण सत्र यथाशीघ्र आरंभ हो सके।
अनिल कुमार निलय, कवी, चित्रकूट
साभार जागरण

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