प्रदेश के सरकारी विद्यालयों को शिक्षकविहीन नहीं रहने देने को सरकार ने मुहिम छेड़ी है। इसके लिए रिक्त पदों पर अल्पकालीन शिक्षकों की तैनाती की गई हैं। ब्लाॅक स्तर पर की गई इस पहल का शुरूआती नतीजा यह रहा कि वर्षो से शिक्षकों को तरस रहे विद्यालयों में चहल पहल बढ़ी और वहां पढ़ रहे छात्र-छात्राओं को विषय अध्यापक मिलने शुरू हो गए। फिलहाल अल्पकालीन व्यवस्था सरकार को रास आती दिख रही है। अल्पकालीन शिक्षक सेवा नियमावली को लेकर कसरत यही संकेत देती है। इस नियमावली के जरिए अल्पकालीन शिक्षकों की व्यवस्था को नियम संगत बनाने की कोशिश की जा रही है। यह दीगर बात है कि सरकार की इस कोशिश से खुद सरकारी विद्यालयों में अल्पकाल के लिए रखे गए अतिथि शिक्षक सहमत नजर नहीं आ रहे हैं। आंदोलनरत ये शिक्षक नियमित नियुक्ति की मांग को लेकर सरकार पर दबाव बनाए हुए हैं। उक्त नियमावली को अमल में लाने के कई पेच है। प्रदेश में पहले से ही अस्थाई, दैनिक वेतन, मानदेय पर कार्यरत कर्मिकों नियमतीकरण को कार्मिक की नियमावली हैं। इसके लाभ के दायरे में अस्थाई शिक्षक भी है। अलबत्ता, नियमावली बनने के बाद अल्पकालीन शिक्षकों को लम्बे समय तक पदों पर बनाए रखने का रास्ता साफ हो सकता है। सरकार ने बीते छह हजार से अधिक पदों पर अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति की थी, लेकिन एलटी संवर्ग की सीधी भर्ती के पदों पर नियुक्ति की वजह से ऐसे शिक्षक भी काफी संख्या में रहे, जिन्हें रोगजार से हाथ धोना पड़ा। बाद में सरकार ने सभी अतिथि शिक्षकों की रिक्त पदों पर तैनाती करने के आदेश जारी किए। फिलहाल आगामी 31 मार्च तक इन शिक्षकों की नियुक्ति के आदेश हैं, इसके बाद नए सत्र में उनके बारे में एक बार फिर सरकार को फैसला लेने की जरूरत पड़ेगी। दूरदराज में कार्यरत इन शिक्षकों से सरकार को राहत भी दी है तो परेशानी भी है। अल्पकालीन शिक्षक सेवा नियमावली परेशानी का निदान कर सकेगी, यह कहना मुश्किल है। दरअसल, सरकारी विद्यालयों में शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने को मजबूत इच्छाशक्ति से काम करने की जरूरत है। शिक्षको की प्रथम नियुक्ति, पदोन्नति और तबादला नीति में दूरदराज में पहली नियुक्ति और पदोन्नति का प्रावधान है, लेकिन शायद ही इस पर सख्ती से अमल किया गया हो। हालत यह रही कि रसूखदारों के चहेते शिक्षक तो पहली नियुक्ति और पदोन्नति में भी मनचाही जगह तैनाती पा रहे हैं, ऐसे में आम शिक्षकों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। चहेतों को लाभ देने के लिए नियमावली में अब तक कई संसोधन किए जा चुके है। बेहतर यही होगा कि शिक्षकों के बड़े समूह को सिर्फ सियासी नफा-नुकसान से देखने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाया जाए। ठोस फैसले लेने के बाद उन्हें मजबूत इच्छाशक्ति से लागू किए जाना चाहिए।
साभार- दैनिक जागरण
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