समान शिक्षा व स्वास्थय का हो अधिकार

सरकारी स्कूल से निकले छात्र को कामयाबी सामान्य तौर पर चर्चाओं में होती है। उनकी कामयाबी पर आश्चर्य लाजिमी है। क्योंकि निजी संस्थानों के अनुरूप सरकारी स्कूलों के तमाम प्रतिभाशाली छात्रों को यह अवसर नहीं मिल पाता है। आखिर शिक्षा, स्वास्थय व अन्य मूलभूत सुविधाओं में दोहरी व्यवस्था कब तक लागू रहेगी। यह न केवल जिम्मेदारों के लिए वरन समाज के सभी तबके के लिए बड़ा सवाल है। कब तक समाज का एक तबका एक छत, एक व्यवस्था के तहत तमाम सुविधाएं हासिल करने के सपने संजोता रहेगा। सामाजिक भेदभाव मिटाने को आतुर यह समाज इससे उपर उठे इस परिकल्पना को साकार करना होगा। हाल ही में कोरोना वायरस से फैली महामारी के चलते भी व्यवस्था पर सवाल उठने लगे। एकेडमी के तमाम छात्र-छात्राओं को आॅनलाइन अघ्ययन की सुविधा मिल रही है। लेकिन उन तमाम छात्र-छात्राओं को इस सुविधा से वंचित होना पड़ रहा है। जिनके पास उचित इंतजाम नहीं है। कहीं इंटरनेट की समस्या है तो कितने ऐसे अभिभावक हैं जिनके पास स्मार्ट फोन अपने पाल्य को देने की क्षमता ही नहीं है। महामारी में आॅनलाइन शिक्षा का चलन जोर पकड़ रहा है। इन तमाम विपरीत परिस्थितियों में यदि कहीं गुदड़ी के लाल ने अपना परचम फहराया तो वह भी उसकी मेहनत का परिणाम होगा। यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि अन्न, जल और जीवन यापन की शैली सब समान है।


सुनील कुमार भट्ट, कोटद्वार
साभार जागरण 

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