‘एक राष्ट्र-एक भाषा’ देश की एकता की डोर को मजबूत कर सकती है, लेकिन भाषा के नाम पर भेदभाव देश की एकता और अखंडता के लिए अनुचित है। मोदि सरकार ने नई शिक्षा नीति में स्थानीय और हिंदी भाषा को प्रोत्साहित करने का जो प्रावधान किया है, उससे कुछ ज्यादा फायदा नहीं हो सकता, क्योंकि कई राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों के सरकारी प्राथमिक स्कूलों में स्थानीय भाषाओं का ही इस्तेमाल होता है। अच्छी बात है कि अब इसे अनिवार्य बना दिया गया है। लेकिन जो लोग ऐसी नौकरी में हैं, जहां उनका तबादला होता रहता हैं, तो उन्हें मुश्किल जा सकती है, क्योंकि कई राज्यों की स्थानीय भाषा एक नहीं है। फिर, मौजूदा समय अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पद्र्धा का है, इसलिए जरूरी यह भी है कि अंग्रेजी भाषा की तरफ बच्चों का रुझान बढ़ाया जाए।
राजेश कुमार चैहान, जालंधन
साभार हिन्दुस्तान
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