तीन दशकों से अधिक अतंराल के पश्चात एक शिक्षा नीति आई है। हिन्दी भाषा में 108 पृष्ठों में प्रस्तुत यह शिक्षा नीति अपने स्वरूप एवं अंतर्वस्तु में वस्तुतः राष्ट्रीय है। यह भारत द्वारा 2015 में अंगीकृत सतत विकास लक्ष्यों को दृष्टि में रखते हुए 2030 तक सभी के लिए समावेशी और समान गुणवत्तायुक्त शिक्षा सुनिश्चित करेगी। 21वीं सदी की प्रथम शिक्षा नीति के रूप में यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति अनेक कारणों से विशिष्ट है।
नई शिक्षा नीति आने के बाद पूरे शिक्षा क्षेत्र में हलचल है। सारे कुलपतियों ने अपने शिक्षकों और विद्यार्थियों को नीति से अवगत करा दिया है। अलग-अलग स्तरों पर संवाद क्रम तेज है। मैं खुद प्रतिदिन करीब दो-तीन संगोष्ठियों का हिस्सा बन रहा हूं। ऑनलाइन ही सारे विवि जुड़े हुए है। कल ही मैने दस से ज्यादा कुलपतियों के साथ एक ऑनलाइन सम्मेलन किया है। चर्चा चल र ही है कि नई शिक्षा नीति लागू करने में कहां क्या समस्याएं आएंगी। कुलपतियों और उच्च शिक्षा समाज में पूरी तरह से सकारात्मक माहौल है। सभी उत्साह में हैं। मातृभाषा, स्थानीय भाषा, भारत की विद्या को केंद्र में आना, विषय को विद्यार्थियों पर छोड़ देना, भारतीय संस्कृति के बारे में सोचना, इत्यादि पर सबकी अच्छी राय सामने आ रही है।
पहली बात की यह शिक्षा नीति भारत केंद्रीत है, दूसरी बात, अकादमिक, वित्तीय स्वायत्तता की अब तक केवल बात होती थी, लेकिन पहली बार यह नीति स्वायत्तता के चरण भी बता रही है। किस चरण में क्या होगा, इसकी व्यवस्था कर रही है। उच्च शिक्षा संस्थानों को अपने वृहद संस्थागत विकास योजना बनाने के लिए स्वतंत्र छोड़ रही है। सिर्फ कुलपति स्तर पर नहीं, बल्कि शिक्षक अकादमिक स्वायत्तता दे रही है। शिक्षक अपने पठन-पाठन-अध्यापन के बारे में अपने विषय और पाठ्यक्रम के बारे में
खुद निर्णय लेकर छज्ञत्रों के हितधारक के रूप में जोड़कर फैसले ले सकेंगे।
पहली बार ऐसा हो रहा है कि जिसे हम पहले शिक्षा से इतर कहते थे, उसे पाठ्यक्रम का अंग बना दिया गया है। मेरा कोई विद्यार्थी अगर खेल में कुछ करता है, तो वह खेल के भी क्रेडिट लेगा। के्रडिट का एक उसका बैंक बन जाएगा, वह कहीं भी जाएगा, तो क्रेडिट का एक उसका बैंक बन जाएगा, वह कहीं भी जाएगा, तो क्रेडिट उसके काम बन जाएगा, लचीलापन इस शिक्षा नीति का महत्वपूर्ण गुण है। काॅलेज या उच्च शिक्षा में प्रवेश और निकास, दोनों में ही लचीलापन संभव होगा। यह सुविधा नई है, कोई विद्यार्थी चाहे या उसे कोई मजबूरी हो, तो बीच में पढ़ाई छोड़कर फिर कभी पढ़ाई शुरू कर सकता है, उसका पुराना क्रेडिट कायम रहेगा।
नीति में शौचालय से लेकर ब्लैक बोर्ड तक हर छोटी-छोटी बात का ध्यान रखा गया है। मैं बिहार मे हूं, यहां भाषा का प्रश्न है, देश में बड़े शहर हैं, वहां कम अंग्रेजी में चल जाता है। पही बार ऐसा हो रहा है कि सबको मातृभाषा में, स्थानीय भाषा में अध्ययन-अध्यापन की सुविधा मिलेगी। ऐसा नहीं सेंट्रल यूनिवर्सिटी है, तो अंग्रेजी में ही चलना पड़ेगा।
एफफिल और पीएचडी के कोर्स में समानता हो गई थी, इसलिए अब एमफिल को खत्म कर दिया गया है। एक नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बनाया गया है। जहां भी कोई शोध या नवाचार कर रहा है, उसकी सूचना एक जगह होगी। उच्च शिक्षा संस्थानों की निगरानी हैं, लेकिन अब एक ही नियामक संस्था होगी, जो नियमन के साथ सहायक का भी काम करेगी। इतने के बदलाव होने हैं कि हर संस्थान को अपने स्तर पर टास्क फोर्स बनाकर शिक्षा नीति को साकार करना होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
लेखक- संजीव कुमार शर्मा
कुलपति, महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी
साभार- हिन्दुस्तान
Comments (0)