इस साल सीबीएसई का पाठ्यक्रम 30 प्रतिशत तक कम कर दिया गया है। इसके लिए क्या मापदंड अपनाए गए, यह कतई समझ में नहीं आता, क्योंकि पाठ्यक्रम से धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रवाद-संघवाद जैसे महत्वपूर्ण टापिक को हटा दिया गया है। तर्क दिया जा रहा है कि छात्र इन विषयों को पहले ही पढ़ चुके हैळ। तब सवाल यह है कि पूर्व में पढ़े गए पाठ को पाठ्यक्रम का हिस्सा क्यों बनाया गया था? साफ है, कोर्स के नाम पर सियासी दल अपनी-अपनी राजनीति खेल रहें है। अब तक सत्ता में आने पर पार्टियां इमारतो, सड़कों, चैराहों का नाम अपने नेता के नाम पर रखती थी, लेकिन अब शिक्षा के साथ यह छेड़छाड की जा रही है। पाठ्यक्रम के बदलाव से छात्र कौन-कौन सा विषय समझने से वंचित रहेंगे, यह तो अभी कहना मुश्किल है, लेकिन यह तय है कि इन टाॅपिक को हटाने से पाठ्यक्रम अधूरा प्रतीत हो रहा है।
अंकिता प्रकाश, रुड़की
साभार हिन्दुस्तान
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