अंतिम सत्र में परीक्षा का कोई दूसरा विकल्प नहीं

कोविड-19 की वैश्विक आपदा ने संपुर्ण विश्व में जीवन के लगभग प्रत्येक आयाम को अनेक प्रकार से प्रभावित किया है। राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक क्षेत्रों में पड़ने वाले प्रभावों पर सामान्य और विशिष्ट विचार-विमर्श सर्वत्र दिख रहा है। पर एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय शिक्षा से संबंधित है। उच्च शिक्षा के स्वरूप, विषय-वस्तु, पाठ्य सामग्री, अध्ययन-अध्यापन पद्धति व कक्षाओं के विषय में आजकल ई-माध्यम से अनेक संगोष्ठियों आयोजित की जा रही हैं, जिनमें विशेषज्ञ विद्वान पाठ्यक्रमों की अंतर्वस्तु पर तकनीकी और प्रौद्योगिकी की प्रभावों की विश्द समीक्षा कर रहें है।


कोविड-19 की आपदा इतनी अप्रत्याशित थी कि लाॅकडाउन के प्रारंभिक चरण में अधिकांश लोग चकित व स्तब्ध थे। इस प्रकार से बाजारों, कार्यालयों, स्कूल-काॅलेजों, परिवहन के साधनों, सभी कुछ के एकदम बंद हो जाने की कल्पना किसी ने भी नहीं की थी। पर धीरे-धीरे इसका अभ्यास बढ़ने लगा और लाॅकडाउन के साथ आगे बढ़ने औश्र अपना काम करते रहने की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी। देश के विश्वविधालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों ने आॅनलाइन माध्यमों का सहारा लेकर विधार्थियों से संपर्क प्रारंभ किया। वीडियो काॅन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कक्षाएं ली जाने लगीं। ई-लेक्चर्स के रोचक व प्रभावी प्रयोग सामने आने लगे। फिर ई-संगोष्ठियां (वेबिनार) आरंभ हुई, जो देश भर में फैल गई।


लाॅकडाउन चूंकि मार्च के सप्ताह में प्रारंभ हुआ था, इसलिए तब तक ज्यातर विश्विधालयों में पाठ्यक्रम का अधिकतम अंश पूर्ण हो चुका था। सेमेस्टर की मध्यावधि आंतरिक परीक्षाएं भी हो चुकी थी। मुख्य परीक्षाएं मई में प्रस्तावित थीं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय और विश्वविधालय अनुदान आयोग ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन करके नए दिशा-निर्देश बनाकर अप्रैल में सभी विश्वविधालयों को भेजे थे। तब यह आशा थी कि कोविड-19 संक्रमण पर लाॅकडाउन से नियंत्रण किया जा सकेगा और जुलाई-अगस्त तक स्थिति सामान्य हो जाएगी। परंतु लाॅकडाउन की समाप्ति के बाद संक्रमति लोगो की संख्या में निरंतर वृद्धि दिखाई देने लगी। ऐसे में, अप्रैल के दिशा-निर्देशों की पुनर्समीक्षा की गई। मानव संसाधन विकास मंत्रालय की सलाह पर यूजीसी ने नवीन दिशा-निर्देश जारी किए है।


नए दिशा-निर्देश की विशेषता यह है कि इनमें अंतिम सेमेस्टर की परीक्षा की अनिवार्यता पर बल दिया गया है, यानी माना यह गया है कि सितंबर के अंतिम सप्ताह तक विश्वविधालय अपने अंतिम सेेमेस्टर के विधार्थियों की आॅफलाइन या आनलाइन परीक्षाएं आयोजित कर लें। कुछ वक्रदृष्टि लोगों को इस पर विवाद खडा करने का अवसर मिल गया है। इस निर्णय का विरोध कर वे एक नकारत्मक वातावरण बनाने में लग गए है। बेमतलब के विरोध में जान-बूझकर इस तथ्य की अनदेखी की जा रही है कि बिना कोई परीक्षा दिए आगामी सेमेस्टर में प्रोन्नत करने के लिए भी प्रावधान किए गए है। उदाहरण के लिए, यदि कोई विधार्थी स्नातक के दूसरे या चैथे सेमेस्टर अथवा स्नातकोत्तर के दूसरे सेमेस्टर में है, तो उसे उसके पिछले सेमेस्टर के अंकों के आधार पर मूल्यांकन पश्चात अगले सेेमेस्टर में प्रोन्नत किया जा सकता है। बाद में स्थिति सामान्य होने पर उसकी आॅनलाइन या आॅफलाइन परीक्षा ली जा सकती है। परंतु यदि कोई विधार्थी स्नातक के छठे सेमेस्टर अथवा स्नातकोत्तर के अंतिम सेमेस्टर में है, उसकी आॅनलाइन या आॅफलाइन ली जानी चाहिए। उसे बिना परीक्षा के प्रोन्नत नहीं किया जा सकता, क्योंकि या उसकी उपाधि की परीक्षा है।


यह भी ध्यान देने योग्य है कि इस परीक्षा में आॅनलाइन व आॅफलाइन का विकल्प उपलब्ध है। इस प्रकार, विधार्थियों के हितों का पूर्ण ध्यान रखा गया है। उपाधि के लिए प्रयासरत-प्रत्येक विधार्थी का यह अधिकार है कि उसे अपनी उत्कृष्टता और दक्षता सिद्ध करने का अवसर मिले और उसका यह अधिकार सुरक्षित रहना चाहिए। इसलिए उच्च शिक्षा से जुडे सभी व्यक्तियों को अपने छात्र-छात्राओं से संवाद करना चाहिए, ताकि उन्हें अनावश्यक भ्रमित न किया जा सके। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
लेखक- संजीव कुमार शर्मा
कुलपति, महात्मा केंद्रीय विश्वविधालय, मोतिहारी
साभार- हिन्दुस्तान

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