न संसाधन थे और न ही स्थानीय भाषा का ज्ञान


हम बिहार के एक दूरदराज इलाके में रहते थे। वहीं पर एक सरकारी स्कूल मंे 12वीं तक हिन्दी के माध्यम में पढाई की। उस वक्त अकसर लगता था, कि अंग्रेजी में बातचीत मेरी सबसे बडी कमजोरी हैं। अंग्रेजी में अपने उच्चारण को लेकर हीन भावना थी और दूसरे लोग भी मजाक बनाते थे। पिताजी बचपन में गुजर चुके थे और हार मानकर बैठने का विकल्प मेरे पास नहीं था। इंजीनियरिंग की पढाई करते वक्त मेरे पास न तो पर्याप्त संसाधन थे और न ही स्थानीय भाषा में किताबें मिल पाती थी। मेरी मां तो सिर्फ पांचवीं तक पढी थी, क्योंकि सबसे नजदीकी स्कूल पांच किमी की दूरी पर था। इन तमाम बातों नें मुझे एक ग्रामीण इलाकों के छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए प्रेरित किया। आईआईटी-वाराणसी से ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद आईआईएम-कोझीकोड से डिग्री ली और फिर तंजानिया जाकर नौकरी करने लगा। मगर, कुछ समय के बाद नौकरी छोड दी, क्योंकि मैं बिहार के बच्चों में आत्मविश्वास पैदा करना चाहता था, ताकि करियर के क्षेत्र में उन्हें उन मुश्किलों का सामना न करना पडेे, जो मुझे झेलनी पडी थी। यही सोचकर इस साल मई में प्रकाश एकेडमी की शुरूआत की, जहां ग्रामीण बच्चों के लिए आफ्टर-स्कूल प्रोग्राम चलाया जा रहा है। इस पहल का मकसद ग्रामीण पृष्ठभूमि के छात्रों को शहरों की तरह संसाधन मुहैया कराना हैं। इस प्रोग्राम के तहत स्कूल के पहले या बाद में बच्चों को पढाया जाता हैं। हम डिजिटल मोड में ट्रेनिंग दे रहंे है और प्रोजेक्ट पर वीडियों देखकर बच्चे वह सीख रहें हैं, जो शायद मौजुदा सिस्टम में वे 12वीं के बाद ही देख पाते। फिलहाल हमारे दो सेंटर गोपालगंज के हुसेपुर और भोरे नामक कस्बों में चल रहंे हैं। इन दोनों संेटर्स में 170 बच्चे जुडे है। यहां हर दिन कमप्यूटर और प्रोजेक्ट की मदद से बच्चों को पढाया जाता हैं। अंग्रेजी, गणित और विज्ञान की पढाई पर जोर रहता हैं, क्योंकि आगे चलकर प्रतियोगी परीक्षाओं में इन्ही का उपयोग ज्यादा होता हैं। हर दिन एक बैच में डेढ घंटे बच्चे पढते हैं। इस प्रोजेक्ट में मेरे साथ बीआईटी मेसरा से इलेक्ट्रानिक्स ऐंड कम्युनिकेशन की पढाई कर चुके कौशिक और एसोसिएट प्रोफेसर रह चुके अमन भी जुडे हैं। सभी अच्छे पैकेज की अपनी नौकरी छोडकर गांव के बच्चों को पढा रहें हैं। सरकारी इंजीनियरिंग काॅलेज के शिक्षक रहें अमन कुमार सिंह नें पाठ्यक्रम तैयार करने में मदद की और 7वीं से लेकर 10वीं तक के पूरे सिलेबस का वीडियों पाठ तैयार किया। इसमें थ्योरी के साथ प्रैटिकल को भी जोडा गया हैं। इससे हर स्कूल में लैब स्थापित करने का खर्च कम हुआ और शिक्षकोें की कमी भी दूर हुई। ग्रामीण बच्चों को क्वालिटी एजुकेशन देने की शुरूआत हमने बिहार के गोपालगंज जिले से की हैं। आगे इसका विस्तार दूसरें ग्रामीण इलाकों में भी किया जाएगा। प्रकाश एकेडमी के स्टार्ट-अप आइडियों को बिहार एंटरप्रन्योर्स एसोसिएशन के इन्क्यूबेशन सेंटर ई-जेड में इन्क्यूबेट किया जा रहा हैं। अब तक दो खुले केन्द्रो का रिस्पांस सकारात्मक रहा हैं। हमने भविष्य में उन जिलों के बच्चों कें बीच केन्द्र खोलने की योजना बनाई है, जहां का रिजल्ट अन्य के मुकाबले कमजोर है।
 
                              लेखक-प्रमोद कुमार
                 साभार- अमर उजाला

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