ऑनलाइन पढ़ाई से बदलता शैक्षिक ढांचा

महामारी के चलते सभी शिक्षण संस्थाएं अचानक बंद कर दी गई थीं ताकि कोरोना संक्रमण से बचाव हो सके। इसके बाद तमाम संस्थाओं ने अध्यापन के लिए इंटरनेट की सहायता से गूगल मीट, जूम आदि का उपयोग करते हुए छात्रों को उनके घर पर अध्यापन कार्य को चलाने का सराहनीय प्रयास किया। तमाम कठिनाइयों के बावजूद लोग इस माध्यम से कार्य कर पा रहे हैं। इस बीच वेबिनार भी खूब हो रहे हैं। अकादमिक अंतरूक्रिया के लिए इस डिजिटल माध्यम का उपयोग अनंत संभावनाएं लिए हुए है। जब इंटरनेट से अध्यापन होता है तो अध्यापक को भी तैयार होना पड़ता है, उसके कार्य का लेखा-जोखा बनता जाता है। उसकी कक्षा का वीडियो बन सकता है और उसकी पाठ्य सामग्री बाद में भी प्रयुक्त हो सकती है। उसका सुधार और विस्तार भी संभव है। इस तरह के कार्य करने में एक विशेष तरह की सर्जनात्मक प्रेरणा मिलती है। एक प्राइमरी का छात्र दिल्ली से कई सौ किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के एक गांव में, लैपटॉप या मोबाइल पर जूम के जरिये अपनी कक्षा अटेंड कर रहा है, अध्यापक से बात कर रहा है और पढ़ रहा है। अध्यापक ही नहीं छात्र को भी कक्षा की अवधि के दौरान ध्यान देना होता है, क्योंकि सब पारदर्शी है और कोई विकल्प नहीं है। इस तरह शैक्षिक कार्य में संलग्नता के नए आयाम भी जुड़ते हैं।


ऑनलाइन शिक्षा आदर्श नहीं कही जा सकती, पर उसके उपयोग को एक अवसर के रूप में ग्रहण करना मजबूरी को सकारात्मक दिशा दे सकता है। वस्तुतरू ऑनलाइन शिक्षा वैकल्पिक और पूरक, दोनों ही भूमिकाओं में है। इन पर कार्य का आरंभ कई साल पहले शुरू हुआ था। इनमें कुछ उपाय तो इकतरफा सूचना उपलब्ध कराते हैं, पर बहुतेरे ऐसे हैं जो उपयोग कर रहे छात्र को सक्रिय भागीदारी का अवसर देते हैं। निरूसंदेह अध्यापक के व्यवहार, हाव-भाव और सामाजिक अंतरूक्रिया भी छात्र छात्रओं को सीखने के लिए जो अवसर देते हैं उस तक पहुंच पाना संभव नहीं है, परंतु अध्यापक के साथ होने वाली कठिनाइयां, जैसे उसकी अनुपलब्धता या उसका कार्यस्थल से अनुपस्थित होना, कक्षा के लिए ठीक तरह से तैयारी न करना, विलंब से आना या फिर विद्यार्थियों के साथ अनुचित व्यवहार करना आदि से भी निजात मिल सकती है।


स्वतंत्र भारत में शिक्षा-संस्थाओं का जाल विस्तृत हुआ है, फिर भी प्रत्येक क्षेत्र में विद्या केंद्रों की संतोषदायी व्यवस्था नहीं हो सकी है और जो केंद्र हैं, उनके विधिवत संचालन में तमाम कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जब हम यह विचार करते हैं कि स्कूल जाने योग्य बच्चों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही तो समस्या और भी विकट दिखती है। यह लगातार अनुभव किया जा रहा है कि विद्यालय भवन, अध्यापक, पाठ्य-पुस्तक, छात्रवास और पुस्तकालय जैसी जरूरतों को पूरा करना और शिक्षण कार्य में अपेक्षित एक निश्चित स्तर की गुणवत्ता के रास्ते में कई बाधाएं आती रहती हैं। लालफीताशाही, कानूनी हस्तक्षेप, स्थानीय तत्वों की दबंगई आदि के चलते अधिकांश शिक्षा संस्थाएं कई वर्षो से लगातार जूझ रही हैं। इस बीच अन्यान्य कारणों से मानक स्तरों से नीचे की व्यवस्था वाली संस्थाएं भी मशरूम की तरह फैलती गई हैं। निजी क्षेत्र में नर्सरी और प्राइमरी से लेकर विश्वविद्यालय तक की संस्थाओं की भरमार हो गई है जो मनमानी फीस वसूलती हैं। इनमें कुछ गुणवत्ता की दृष्टि से अच्छी हैं तो एक बड़ी संख्या मानकों पर खरी नहीं उतरतीं। इसका परिणाम यह हुआ है कि छात्रों और अभिभावकों, दोनों में असंतोष फैलने लगा है। ऐसे में परीक्षा पास कर प्रमाणपत्र लेने वालों की संख्या तो बढ़ी है, परंतु क्षमता और कौशल आदि की दृष्टि से योग्य अभ्यर्थियों की कमी भी होने लगी है। शिक्षा जगत में मांग और पूर्ति के इस विषम माहौल में दूरस्थ शिक्षा की व्यवस्था ने राह दिखाई है। राष्ट्रीय मुक्त शिक्षा संस्थान और इग्नू ने औपचारिक शिक्षा की व्यवस्था में लचीला रुख अपनाया है, परंतु गुणवत्ता की दृष्टि से किसी तरह का समझौता नहीं किया। ऐसी व्यवस्था के अच्छे परिणाम भी आए हैं। इनसे पढ़कर निकलने वाले छात्रों की योग्यता और क्षमता संतोषजनक पाई जा रही है। कई राज्य सरकारों ने भी दूरस्थ शिक्षा के लिए विश्वविद्यालय स्थापित किए हैं, परंतु किशोर छात्रों का मानसिक तनाव तब बहुत बढ़ जाता है जब अच्छे अंक पाने वालों को भी अगली कक्षा में प्रवेश नहीं मिल पाता। ऐसे माहौल में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के राष्ट्रीय शिक्षा मिशन के तहत महत्वपूर्ण कार्य आरंभ हुआ है। इनमें सबसे महत्वाकांक्षी स्वयं नामक कार्यक्रम है। इस पर 2000 पाठ्यक्रम संचालित करने का प्रावधान है जो विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय स्तर के औपचारिक और अनौपचारिक, दोनों तरह के छात्रों के लिए उपलब्ध हैं। इसी तरह ज्ञानदर्शन और स्वयंप्रभा टीवी पर विभिन्न विषयों के पाठ को छात्रों हेतु उपलब्ध कराता है। अनुसंधानकर्ताओं के लिए शोध सिंधु, शोध गंगा महत्वपूर्ण संसाधन उपलब्ध कराता है। वचरुअल लैब वैज्ञानिक प्रयोगों को संपादित करने का प्रशिक्षण देती है।


समर्थ उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के लिए है। ‘ई आचार्य, ‘साक्षात’, ‘ई विद्वान’ जैसी सुविधाएं उच्च शिक्षा का परिदृश्य बदल रही हैं। ‘शोध शुद्धि’ साहित्यिक चोरी की जांच करने वाला सॉफ्टवेयर है जो विश्वविद्यालयों को उपलब्ध कराया जा रहा है। नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी से पुस्तकों को प्राप्त करना सरल हो गया है। ऐसे ही ‘नेशनल एकेडमिक डिपोजिटरी’ द्वारा सभी अकादमिक परीक्षाओं का प्रमाणीकरण का कार्य आरंभ हुआ है। इन सुविधाओं को अंग्रेजी, हिंदी के साथ अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी उपलब्ध कराना और निरंतर अद्यतन करते रहना जरूरी है। चूंकि ऑनलाइन शिक्षा को लेकर मौजूदा मानव संसाधन विकास मंत्री विशेष रूप से गंभीर हैं इसलिए आशा की जाती है कि शिक्षा की कायापलट में इस पहल का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाएगा।                                                            (लेखक प्रोफेसर और कुलपति रहे हैं)


लेखक गिरीश्वर मिश्र
साभार जागरण

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