किसी राष्ट्र का निर्माण अचानक नहीं होता है। राष्ट्र निर्माण में शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक योगदान की आवश्यकता होती है। विश्वविधालयों का काम विधार्थियों के व्यक्तिव का निर्माण करना होता है। यह तब होगा, जब उनका शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक सभी क्षेत्रों में विकास हो। इसी आधार पर सहनशीलता, सद्भाव, निष्पक्षता और अनुशासन के गुण वाले लोग तैयार होते है। ये ना केवल अपना, अपने परिवार, बल्कि अपने देश के निर्माण के साथ-साथ समूची सृष्टि में अपना योगदान सुनिश्चित करते हैं। जैसे ओलंपिक में अलग-अलग राष्ट्र शामिल होते हैं, वैसे ही विश्वविधालय में देश के अलग-अलग हिस्सों से आए लोग मिलकर राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने वाले लोग तैयार करने के लिए जरूरी है कि शिक्षा उत्पादक, व्यावहारिक और क्रियान्वित करने वाली हो। इसी दिशा में विश्वविधालयों की यह पहल होनी चाहिए कि शैक्षणिक वातावरण के साथ-साथ यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम में खेल गतिविधियों को भी कोर ऐक्शन का हिस्सा बनाया जाए। विश्वविधालयों में शैक्षिक गतिविधियों के अलावा खेलकूद का भी प्रभावी और अनुकूल माहौल विकसित किया जाए। इसके लिए विश्वविधालय स्तर पर हमारे पास अलग से बजट हो, बल्कि इनडोर व आउटडोर गेम्स के लिए उपयुक्त स्थान भी सुनिश्चित हो। संसाधनों के साथ-साथ फैकल्टी के चयन में सुधार किया जाए, ताकि परफाॅर्मेंस को सिर्फ मात्रात्मक ही नहीं, बल्कि गुणात्मक रूप से भी मजबूत किया जा सके। इसके लिए विश्वविधालय और महाविधालय के स्तर पर खेलकूद के जरूरी संसाधनों और उनका उपयोग कराने वाले प्रशिक्षकों की खास जरूरत है। कई विश्वविधालयों ने इस दिशा में बड़े फैसले भी लिए है और अपने स्तर पर तमाम जरूरी इंतजाम भी किए है। किसी समान नीति की दिशा में एक साथ कई कदमों को उठाने की जरूरत अब हमारे सामने आ खड़ी है। अटल जी का एक साक्षात्कार याद आता है, ये बताना मुश्किल है... लेकिन हमें कई प्राथमिकताओं पर काम करना होगा।
विश्वविधालयों में खेलकूद के आधारभूत ढांचों को मजबूत करने में भीऐसा ही है। हमें एक स्पष्ट नीति के तहत अब विश्वविधालय स्तर पर संसाधन और सामाथ्र्य, दोनों का इंतजाम करना होगा। इसमें खेलकूद के साधनों के इंतजाम के साथ उनके प्रबंधन की भी व्यवस्था जरूर करनी होगी। इसके अलावा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश को अलग-अलग स्तर पर प्रतिनिधित्व करने वाले खिलाडियों और पूर्व खिलाड़ियों को गेस्ट फैकल्टी से लेकर अलग-अलग तरीकों में विश्वविधालय की क्लासेज से जोड़ना होगा। इन सभी के साथ हमें खेलों के चैतरफा विकास के लिए नीतियां बनानी होगी। ये एक स्वागत योग्य बात है कि बीते कुछ सालों में खेल मंत्रालय और युवा कल्याण मंत्रालय ने बेहतरीन फैसलों से तमाम युवाओं को मुख्यधारा में लाने का मार्ग प्रशस्त किया है। पर अब विश्वविधालयों को भी सरकार के इस अभियान मे ंहाथ बटाना होगा। इसके लिए विश्वविधालयों को एक समेकित नीति पर काम करना आवश्यक होगा।
सामाजिक अनुभव के आधार पर यह देखा जा रहा है कि आज का युवा देश के कुछ बड़े विद्वानों, बड़े वैज्ञानिकों, बड़े चिकित्सकों, बड़े नौकरसाहों के बारे में एक बार न भी जानता हो, परंतु इसमें कोई शक नहीं है कि वह पूछने पर तुरंत दो-चार बड़े खिलाडियों का नाज जरूर गिना देता है। व्यावहारिक रूप से यह भी सही है कि हम ऐसे देश में रहते हैं, जहां क्रिकेट के किसी वल्र्ड कप के लिए सड़कों पर कफ्र्यू-सा सन्नाटा देखने को मिल कसता है। हिन्दुस्तान की यही खेल प्रेमी भावना हमारी शक्ति बन सकती है।
इस शक्ति का प्रयोग करना होगा। हमें विश्वविधालयों को खेलों का पेशेवर प्रशिक्षण और करियर डेवलपमेंट की नीतियों से जोड़ना होगा, जिससे कि उनमें खेलो के रोजगाररोन्मुख होने की संभावना विकसित हो सके। स्कूलों, काॅलेजों और विश्वविधालयों को ऐसा माहौल विकसित करना होगा कि प्राइमरी लेवल से हायर एजुकेशन तक विधार्थी पढ़ाई के साथ खेलों को भी अपनी क्षमता और रुचि के हिसाब से जीवन का हिस्सा बना सकें। नीतिगंत निर्णय और सामूहिक प्रयास की स्थितियां ऐसा भारत बना सकेंगी, जिसमें न सिर्फ बौव्द्धिक, बल्कि शारीरिक रूप से सशक्त युवा समाज को सही दिशा देने के लिए और अधिक सामथ्र्यवान हो सकेगा।
-अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा परिषद और पूर्व कुलपति, काशी हिन्दु विश्वविधालय
लेखक- गिरीश चंद्र त्रिपाठी
साभार- अमर उजाला
Comments (0)