प्रदेश में एक और उच्च व तकनीकी शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर सरकार हाथ-पांव मार रही है, दूसरी और राज्य विश्वविधालय बदहाली से उबर नहीं पा रहें है। पिछले कई वर्षों से विश्वविधालयों और सरकार के बीच तालमेल में साफतौर पर कमी नजर आती है। विश्वविधालयों में समय पर कुलपतियों और कुलसचिवों की नियुक्ति नहीं हो रही है। यदि नियुक्तियां हो रही है तो उन पर तमाम तरह से सवाल उठ रहे है। कई मामलों में अदालत को भी सरकार को नसीहत देने को मजबूर होना पड़ा है। तकनीकी विश्वविधालय में इन दिनों यही हो रहा है। कुलपति और कुलसचिव के बीच विवाद जब नहीं थमा तो राजभवन को हस्तक्षेप करना पड़ा। अब राजभवन ने मौजूदा कुलसचिव की नियुक्ति को ही नियमों का हवाला देते हुए सही नहीं माना है। साथ में राज्य सरकार को एक महीने के भीतर पात्रता की शर्ते पूरा करने की हिदायत के साथ कुलसचिव की नियुक्ति के आदेश दिए है। इससे पहले भी उक्त विवि में पीएचडी में बड़े स्तर पर अनियमितताएं पकड़ी गई थी। राजभवन ने उसका भी स्वतः संज्ञान लेकर सरकार को कार्रवाई के निर्देश दिए थे। इस मामले में विजिलेंस जांच के आदेश आज तक नहीं हो सके। स्पेशल आॅडिट में विश्वविधालय में नियुक्तियों समेत तमाम स्तरो पर गड़बडियों का खुलासा किया गया था। आश्चर्यजनक ढंग से सरकार ने इन मामलों में तुरंत कार्रवाई के बजाए ढ़िलाई बरती। लगातार इस ढ़िलाई का ही नतीजा है कि विश्वविधालय अपने उद्देश्यों पर आगे बढ़ने के बजाए विवादों का केंद्र बनकर रह गया है। इससे कुलसचिव की नियुक्तियां विवादों के घेरे में रही। तब भी राजभवन की ओर से कुलसचिव की नियुक्तिय को गलत ठहराते हुए सरकार को रिमाइंडर भी भेजे गए थे। जीबी पंत विवि को लेकर कुमाऊं विवि समेत तमाम विवि में अंदरखाने खींचतान का असर शिक्षा पर पड़ना लाजिमी है। बेहतर यही होगा कि नियुक्तियों में भी पारदर्शिता और शिक्षा के मानदंडों को ही तवज्जों दी जाए। अन्यथा बड़ी संख्या में खुल चुके राज्य विवि शिक्षा के नाम पर सफेद हाथी साबित होकर रह जाएंगे।
साभार जागरण
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