प्रचलित शिक्षा पद्धति का महत्व

वक्त की जरूरत है ऑनलाइन शिक्षा शीर्षक से लिखे अपने लेख में प्रेमपाल शर्मा ने आधुनिक शिक्षा पद्धति में ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ाया देने की वकालत की है। उनकी बात भारतीय परिदृश्य में पूर्णरूपेण सही नहीं लगती है। यहां की आबादी का एक बड़ा भाग सरकारी विधालयों, महाविधालयों एवं विश्वविधालयों में पढ़ता है। यहां आज भी बुनियादी ढ़ांचे का अभाव दिखता है। कहीं कक्षाएं सही है तो बिजली नहीं हैं, कहीं बिजली है तो आधुनिक लैब नहीं है। और सबसे बड़ी बात है आॅनलाइन शिक्षा प्रदान करने की तकनीक सबके पास उपलब्ध नही है। यहां के गरीब परिवारों के बच्चों के पास कंप्यूटर या लैपटाॅप तो दूर, स्मार्टफोन भी उपलब्ध नहीं हैं। अच्छी स्पीड वाली इंटरनेट सेवा आज भी गांवों में सही तरह उपलब्ध नहीं है। अगर ऑनलाइन शिक्षा के दूसरे पहलू पर ध्यान दें तो अधिक देर तक अगर आप कंप्यूटर स्क्रीन या मोबाइल स्क्रीन देखते है तो कई प्रकार की स्वास्थय संबंधी विकार भी उत्पन्न होने लगते है। और तो और इसे हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराना एक अलग चुनौती है। वास्तव में ऑनलाइन शिक्षा भारतीय शहरों में उच्च आय वर्ग के परिवारों में तो फल-फूल रहा है, लेकिन बात पर्यावरण की तो प्रारंभिक अवस्था में बच्चों को पहले स्लेट, पेंसिल दी जाती थी और बाद में उन्हें काॅपी और बाॅल पेन दिया जाता था। आधुनिकता के दौर में सब धीरे-धीरे खत्म होता चला गया। मैं यह नहीं कहना चाहता कि ऑनलाइन शिक्षा बिल्कुल गलत है, लेकिन हमारी प्रचलित शिक्षा पद्धति का आज भी व्यापक महत्व कायम है।


संदीप रौशन, पटना विश्वविधालय, पटना

साभार जागरण

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