प्रदेश में शिक्षा में नए प्रयोगों को शुरुआती दौर में हाथों-हाथ लिया तो जाता है, लेकिन उन्हें शिद्दत से अमल में लाने तक स्थिति में बदलाव की नौबत आ जाती है। इसे इच्छाशक्ति में कमी कहना अस्वाभाविक नहीं है। व्यावसायिक शिक्षा योजना का कमोबेश यही हश्र हो रहा है। इस योजना को कौशल विकास से जोड़कर केंद्र सरकार ने भी व्यावहारिक रूप देने की कोशिश की। शुरुआत में राज्य सरकार ने इसमें खासी रुचि भी दिखाई। अब हालत ये है कि तकरीबन पांच साल से इस योजना पर अमल नहीं हो सका है। इस वजह से हर साल कक्षा नौ से लेकर बारहवीं तक करीब दस हजार छात्र-छात्रएं व्यावसायिक शिक्षा के लाभ से वंचित हो रहे हैं। इस योजना के तहत व्यावसायिक शिक्षा के लिए विषयों के चयन में राज्य सरकार के स्तर पर खासी मशक्कत की गई। इसके बाद ऐसे विषय चिह्नित किए गए, जिन्हें राज्य की परिस्थितियों के मुताबिक व्यावहारिक व रोजगारपरक माना जा सकता है। स्कूली शिक्षा के स्तर पर ही कौशल विकास की यह मुहिम भविष्य के लिए कारगर साबित हो सकती है। इसकी अहमियत जानने के बावजूद राज्य सरकार का इस योजना को लेकर कामचलाऊ रवैया चिंताजनक ही माना जाएगा। ध्यान देने की बात ये भी है कि खुद सरकार विधानसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में यह मान चुकी है कि सरकारी स्कूलों में घटती छात्रसंख्या से निपटने के उपायों में व्यावसायिक शिक्षा शामिल है। यही नहीं इस योजना के तहत नए विषयों में हॉर्टीकल्चर और फ्लोरीकल्चर को शामिल करने का निर्णय राज्य सरकार ने लिया है। इस योजना को क्रियान्वित करने में पेच ट्रेनिंग पार्टनर को लेकर फंसा है। इस मामले में जल्द फैसला लिया जाना चाहिए। सरकार वैसे भी नए स्टार्टअप को प्रोत्साहित कर रही है। उनके माध्यम से भी योजना को मूर्त रूप दिया जा सकता है। प्रदेश में वचरुअल क्लास योजना को शुरू करने का मामला लंबे अरसे से लटका हुआ था। इस मामले में इच्छाशक्ति दिखाने का परिणाम बेहतर रहा है। वर्चुअल क्लास के माध्यम से दुर्गम क्षेत्रों के स्कूलों के छात्र-छात्रओं को भी उन विषयों को पढ़ने का मौका मिल रहा है, जिनके विषय अध्यापक नहीं हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि व्यावसायिक शिक्षा को लेकर भी सरकार इसी तरह दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाएगी।
साभार जागरण
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