विद्यालयों का नया सत्र शुरू होने में लगभग एक माह बाकी है। अभिभावक अभी से बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने की चाह में अच्छे स्कूल में दाखिला करवाने के लिए स्कूलों का चक्कर काट रहें हैं। वहीं, निजी स्कूल बेहतर सुविधा देने के नाम पर अभिभावकों की जेबें ढीली करने में पीछे नहीं हटते। इसी सत्र में ही नहीं, बल्कि स्कूलों की यह मनमानी हर साल बढ़ती जाती है। वहीं जिम्मेदार विभाग और प्रशासन को सब पता होने के बाद भी स्कूलों पर सख्त कार्रवाई नहीं हो पाती। एक स्कूल की ज्यादा शिकायत मिलने पर शिक्षा विभाग के अधिकारी खानापूर्ति कर संबंधित स्कूल को नोटिस थमाकर अपना पल्ला झाड़ देते हैं। साथ ही अभिभावकों को यह आश्वासन दिलाया जाता है कि उन्होंने स्कूल पर कार्रवाई की है, अब आगे से स्कूल मनमानी नहीं करेंगे। लेकिन स्कूलों की मनमानी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। बीते साल की तरह भी इस बार निजी स्कूलों में ब‘चों का दाखिला कराने वाले अभिभावकों को स्कूल की मनमानी की भी चिंता सता रही है। अब ऐसे में शिक्षा विभाग प्रशासन को चाहिए कि मनमानी करने वाले स्कूलों को चिह्नित कर उन पर सख्त कार्रवाई करें। इसके लिए जो भी कानून हो उस को अमल में लाया जाए। बच्चे का दाखिला करवाने से लेकर ड्रेस, किताबों को लेकर निजी स्कूलों में किसी तरह को कोई मानक नहीं हंै। जिससे स्कूल लगातार मनमानी पर उतर आते हैं। सरकार और शिक्षा विभाग को भी चाहिए कि इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए शिक्षा के व्यवसायीकरण को रोका जाए। यदि स्कूल इसके बाद भी मनमानी करते हैं तो उन पर कठोर कार्रवाई की जाए। सरकार इस दिशा में अमल नहीं करेगी तो आने वाले दिनों में आर्थिक रूप से कमजोर अभिभावकों के सामने निजी स्कूलों में बच्चों का दाखिला करवाना काफी मुश्किल हो जाएगा।
दीपक कंडवाल, ऋषिकेश
साभार जागरण
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