शिक्षा क्षेत्र की निराशा

शिक्षा के मद में पिछले साल के मुकाबले इस बार बजट में पैसे बढ़ाए गए हैं, लेकिन ये पर्याप्त नहीं हैं, क्योंकि आवंटित राशि देश के सकल घरेलू उत्पाद का तीन-चार प्रतिशत ही होगी। कोठारी आयोग, 1964 और राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 ने शिक्षा पर कम से कम छह प्रतिशत खर्च करने की बात कही थी, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो सका है। बजट में नए विश्वविद्यालय खोलने की बात कही गई है, लेकिन पुराने विश्वविद्यालयों में ही सुधारात्मक नीतियां अपनाई जाएं, तो काफी तरक्की हो सकती है। देश की शिक्षा में तभी सुधार हो सकता है, जब उसके बजट में सुधार हो, अन्यथा इसी तरह की लुंज-पुंज व्यवस्था बनी रहेगी।


- शैलेश मिश्र, बीएचयू
- साभार हिन्दुस्तान

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