निजी स्कूलों में जहां स्कूल प्रबंधन की ओर से शिक्षकों के लिए अलग से ड्रेस कोड लागू किया जाता है, वहीं सरकारी स्कूल में शिक्षक इसके विरोध में उतर जाते हैं। प्रदेश सरकार ने बीते साल भी सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के लिए ड्रेस कोड लागू किया था, लेकिन शिक्षक संगठनों ने इसका विरोध जताते हुए ड्रेस पहनने से मना कर दिया। इतना ही नहीं शिक्षकों ने चेतावनी भी दी कि यदि सरकार इसे लागू करती है तो आंदोलन करेंगे। बच्चों का भविष्य और उन्हें सही रास्ते पर ले जाने वाले शिक्षकों का इस तरह की चेतावनी देना कहीं भी उचित नहीं है। क्योंकि स्कूलों में छात्र-छात्रओं के पोशाक का खास महत्व है। यह उनमें स्वच्छता, समानता और अपनापन का बोध करता है। इसकी विशेष अहमियत को देखते ही विश्व के स्कूलों में छात्रों की ड्रेस आम चलन में है। इसी तरह अधिवक्ता व रेल कर्मचारियों की ड्रेस देखकर उनके बारे में पता चल जाता है। लेकिन अब तक शिक्षकों के लिए लागू ड्रेस कोड का शिक्षक संगठनों का विरोध करना किसी भी दिशा में उचित नहीं है। क्योंकि ड्रेस कोड लागू होकर उसे अपनाने से शिक्षक शिक्षक ही रहेंगे और इससे स्कूलों का माहौल भी बेहतर रहेगा। अब शिक्षक संगठन को भी चाहिए कि सरकार और शिक्षा विभाग की ओर से लागू किए गए ड्रेस कोड का विरोध करने के बजाए इसे अपनाएं। अभिभावक भी पूर्व में इस ओर मांग कर रहें थे, यदि शिक्षक इसे अपनाएंगे तो उनकी मांग भी पूरी हो सकेगी। शिक्षकों को ड्रेस पहनने में शर्म न करते हुए विभाग और सरकार के निर्देशों का पालन करना चाहिए। वैसे भी शिक्षकों को यह समझना चाहिए कि जब स्कूली बच्चों के लिए ड्रेस कोड हो सकता है तो शिक्षकों के लिए क्यों नहीं हो सकता।
श्वेता नेगी, कोटद्वार
साभार जागरण
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