उत्तराखंड में उच्च शिक्षा

उत्तराखंड में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अब सरकार गंभीर नजर आ रही है। इन दिनों जारी विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सरकार ने जानकारी दी कि वर्ष 2022 तक प्रदेश में प्रत्येक सरकारी डिग्री कॉलेज का अपना भवन तैयार हो जाएगा। इसके लिए अनुपूरक बजट में बाकायदा 40 करोड़ रुपये की व्यवस्था भी की गई है। दरअसल, उत्तराखंड गठन के 19 साल बाद भी उच्च शिक्षा में गुणवत्ता लगातार सवालों के घेरे में है। विशेषकर पर्वतीय क्षेत्रों में स्थिति बेहद गंभीर है। दरअसल, उच्च शिक्षा के नाम पर हो रही सियासत ने हालात को इस स्थिति में पहुंचा दिया है। वोट की फसल काटने के लिए माननीय डिग्री कॉलेज खोलने की घोषणा तो कर देते हैं, लेकिन शायद ही कभी इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर सोचा जाता हो। पिछले दिनों बताया गया कि प्रदेश के 20 ब्लॉकों और 15 विधानसभा क्षेत्रों में डिग्री कॉलेज नहीं हैं। इन क्षेत्रों में डिग्री कॉलेज खोलने के लिए उच्च शिक्षा विभाग को प्रस्ताव तैयार करने के आदेश दे दिए गए। यह आलम तब है कि जब कि कि दो सौ से कम छात्रसंख्या वाले डिग्री कॉलेजों को नजदीकी कॉलेजों में मर्ज करने पर विचार किया जा रहा है। जाहिर ऐसे में यह सवाल मौजू है कि जब कॉलेजों को पर्याप्त संख्या में छात्र में नहीं मिल रहे तो एक के बाद एक कॉलेज खोलने का क्या औचित्य है। सच्चाई यह है कि पर्वतीय क्षेत्रों में डिग्री कॉलेज जैसे संस्थान एक या दो कमरे में संचालित किए जा रहे हैं। कॉलेज में फैकल्टी का अभाव है तो छात्रों को अपने पसंदीदा विषय के अध्ययन की सुविधा भी नहीं है। यहां तक कि पुस्तकालय और प्रयोगशाला तक की सुविधा नहीं है। इतना ही नहीं इन कॉलेज में न्यूनतम 180 दिन पढ़ाई कराना एक चुनौती बन गई है। गुणवत्ता की बात करें तो स्थिति और खराब है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की और भारतीय प्रबंधन संस्थान काशीपुर को छोड़ दें तो प्रदेश का कोई भी संस्थान देश में टॉप-100 में जगह नहीं बना पाया। इस पर चिंतन और मनन की जरूरत है कि 12वीं के बाद क्यों पर्वतीय क्षेत्रों से बच्चे देहरादून, हरिद्वार अथवा नैनीताल और हल्द्वानी का रुख करने पर विवश हैं। प्रश्न यह है कि स्कूली शिक्षा के लिए उत्तराखंड भले ही छात्र-छात्रओं की पसंद हो, लेकिन उच्च शिक्षा के लिए वे अन्य राज्यों का रुख करना पसंद करते हैं। अच्छा है कि सरकार सभी सरकारी कॉलेजों के भवन बनाने के लिए दृढ़संकल्पित है, लेकिन इंफास्ट्रक्चर और गुणवत्ता पर भी फोकस करना होगा। गुणवत्ता के बिना उच्च शिक्षा का कायाकल्प बेमानी ही है।


साभार जागरण

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