शिक्षा संस्थानों की फीस का सवाल शीर्षक से लिखे अपने लेख में प्रो. निरंजन कुमार ने जेएनयू कैंपस में शुल्क वृद्धि को लेकर उभरने वाले छात्र आक्रोश के संदर्भ में उच्च शिक्षण संस्थानों की शुल्क वृद्धि से संबंधित जो सुझाव दिए हैं, वह इस समस्या का अंतिम समाधान नहीं है। वस्तुतः इस समस्या के निराकरण के लिए केंद्र सरकार द्वारा राज्य एवं केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षा के सभी स्तरों पर शिक्षण शुल्क की एक समान नीति लागू की जानी चाहिए। जिसमें सभी छात्रों के लिए शुल्क भुगतान की एक नीति और प्रकिया निर्धारित हो। ऐसे में जो अति गरीब छात्र विश्वविद्यालय का निर्धारित शुल्क भुगतान करने में असमर्थ हैं, उनके लिए भी केंद्र सरकार को कोई ऐसा रास्ता निकालना चाहिए जिससे प्रतिभाशाली गरीब विद्यार्थी अर्थाभाव के कारण उच्च शिक्षा से वंचित न हो सकें। यह रास्ता ब्याज मुक्त बैंक शिक्षा ऋण का भी हो सकता है, जो न केवल गरीब विद्यार्थियों को मुफ्तखोरी की अपसंस्कृति से दूर रखेगा, अपितु व्यवसायरत होने के बाद ऐसे सभी गरीब विद्यार्थी स्वाभिमान पूर्वक शिक्षा ऋण के रूप में लिया गया बैंक का मूलधन भी आसान किस्तों में वापस कर सकेंगे। इसके साथ ही केंद्र सरकार को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि सरकार द्वारा अनुदानित इन विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने की एक निर्धारित आयु सीमा हो, जो अधिकतम 30 वर्ष से अधिक न हो। इससे जेएनयू जैैसे विश्वविद्यालयों में उन उम्रदराज छात्रध्छात्रओं के प्रवेश पर रोक लग सकेगी जो 40 या उससे अधिक आयु तक बेवजह विश्वविद्यालयों में रुककर छात्र राजनीति का हिस्सा बनते हैं। इस समय शुल्क वृद्धि की ओट में जेएनयू के छात्रों द्वारा जो शोरगुल किया जा रहा है, उसमें ऐसे उम्रदराज छात्रों की संख्या ही अधिक है। यही छात्र टुकड़े-टुकड़े गैंग का सदस्य बनकर देश विरोधी राजनीति का हिस्सा बनते हैं, जो देशहित में नहीं है। देश की युवा पीढ़ी राष्ट्र के विकास में भागीदार बन सके, ऐसा प्रयास विश्वविद्यालयी शिक्षा के माध्यम से होना चाहिए।
डॉ. वीपी पाण्डेय, अलीगढ
साभार जागरण
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