वर्ष 2014 में एनडीए सरकार ने देश की कमान संभाली थी, तभी स्पष्ट किया था कि वैश्विक परिवेश की नई चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए हमें एक नई शिक्षा-नीति की आवश्यकता है। प्रख्यात अंतरिक्ष वैज्ञानिक डाॅ के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षा में 2017 में नौ सदस्यीय समिति का गठन हुआ औश्र उस समिति को जिम्मेदारी दी गई कि वैश्विक प्रतिस्पद्र्धा की जरूरतों के अनुसार वह शिक्षा-नीति का मसौदा स्वीकार करके जब हमने इसे पब्लिक डोमेन में डाला और इसके समस्त हितधारकों से जुड़ने की कोशिश की, तो विश्व में मुक्त नवाचार का अपनी तरह का सबसे बढ़ा प्रयोग था। नई शिक्षा-नीति के बारे में हमें अब तक करीब सवा दो लाख सुझाव प्राप्त हुए है, जिनका विश्लेषण हो रहा है।
मुझे इस बात का पूरा विश्वास है कि हम अमेरिका जर्मनी, जापान की नकल करके अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पद्र्धा का मुकाबला नहीं कर सकते, हमें भारत बनकर ही वैश्विक चुनौतियों से निपटना होगा। हम विश्व-गुरु रह हैं, हमने पूरे विश्व का मार्गदर्शन किया है। नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला, वल्लभी जैसे केंद्रों ने संपूर्ण विश्व को नई दिशा दिखाई। यह सब इसलिए हुआ, क्योंकि हमारी शिक्षा-नीति मूल्यों और संस्कारों पर आधारित थी। चाहे हमारे गुरुकुल रहे हों, चाहे विश्वविधालय, सर्वत्र मानवीय मूल्यों की शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
किसी भी राष्ट्र की प्रगति औश्र विकास का आकलन मात्र संसाधन जुटा लेने से नहीं होगा, अपितु वहां के लोगों द्वारा अपनाई जाने वाली पद्धतियों, संस्कारों, मूल्यों, कार्यशैलियों से राष्ट्र का निर्माण होता है। हम अपने डिजिटल संसाधनों से शहर के चप्पे-चप्पे की निगरानी तो कर सकते हैं, लेकिन सन्मार्ग पर चलते हुए हमें अपनी कार्य-संस्कृति, संस्कारों, मूल्यों और कार्यशैली को भी उसी के अनुरूप ढ़लना होगा, तभी एक शक्तिशाली भारत, समृद्ध भारत, आयुष्मान भारत, आत्मानिर्भर भारत का सपना साकार होगा।
आज भारत को युवा की संज्ञा दी जा रही है। विश्व मनीषा को भारत के नवयुवकों में विशिष्ट ऊर्जा दिखाई दे रही है। विकास और प्रगतिशीलता की आंधी में विश्व बिरादरी को भारत के बाजार अपनी ओर आकर्षित कर रहे है। आर्थिक रूप से सशक्त देश भारत में निवेश करना चाहते है। युवा राष्ट्र के रूप में हमारे पास युवाओं की असीम शक्ति है। मगर इस शक्ति का सदुपयोग इस बात पर निर्भर करेगा कि किस प्रकार हम इसे संस्कारित कर राष्ट्र-निर्माण के लिए प्रेरित करें।
वैश्विक शक्ति के रूप में भारत का अभ्युदय इस बात पर निर्भर करेगा कि हमारे सभी युवा अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार समर्पित भाव से देश के लिए कार्य करें। एक नवाचार, शोध एवं अनुसंधान का महत्वपूर्ण केंद्र बन सकते है। मैंने विभिन्न मंचों से लगातार यह कहा है कि युवा विधार्थियों के रूप में हमारे पास एक बड़ी शक्ति है। अमेरिका जनसंख्या से अधिक हमारे विधार्थियों की संख्या है।
हम इस युवा शक्ति को सकारात्मक दिशा में ले जाने में सक्षम हुए, तो एक नए युग का सूत्रपात कर सकते हैं। मेरा दृढ़-विश्वास है कि भारत की अपिल गरिमामयी परंपरा और संस्कृति को संजाने में राष्ट्रवाद की धारणा और भावना अत्यंत उपयोगी होती है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि राष्ट्रवाद किसी भी समृद्ध और सर्वभौम देश के लिए रीढ़ का काम करता है। इसलिए विधालयों, विश्वविधालयों में राष्ट्रवाद से प्रेरित शिक्षण होना अधिक लाभकारी होगा। मेरा मानना है कि हमारे विश्वविधालयों मे विकास के उद्देश्य से किया जाता है। इसलिए जो लोग राष्ट्रवाद व आधुनिक उच्च शिक्षा-व्यवस्था में विरोधाभास देखते हैं, वे कहीं न कहीं बड़ी भूल कर रहे है।
‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के प्रधानमंत्री के संकल्प को पूर्ण करने में हमारे शिक्षण संस्थान अद्वितीय योगदान कर सकते हैं हमारे प्राचीन धरोहरों को फिर से जीवंत बना सकते है। मुझे विश्वास है कि मूल्यों पर आधारित नई शिक्षा-नीति भारत को वैश्विक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने में सफल होगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
लेखक- रमेश पौखरियाल ‘निशंक’
साभार - हिन्दुस्तान
Comments (0)