भारत में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए दिव्यांग विद्यार्थियों को काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। रैंप, ऊपर चढ़ने के लिए लिफ्ट और आॅडियों टेप रिकाॅर्डर की सुविधाएं उपलब्ध न होने के कारण अधिकतर दिव्यांग विश्वविधालय और महाविधालय छोड़ देते हैं या परिस्थितिवश नामांकन ही नहीं कराते। यूएनसीआरपीडी (यूनाइटेड) नेशन्स कन्वेंशन राइट्स आॅफ परसंस विद डिसेबिलिटीज) में दिव्यांग के अधिकारों को सुनिश्चित किया गया है, और परसन विद डिसेबिलिटि ऐक्ट 2016 में जोर देकर कहा गया है कि विभिन्न विधालयों, और अन्य संस्थाओं को दिव्यांग जनो के अनुरूप बनाया जाए, मगर दिव्यांग विधार्थियों के लिए स्थिति अब भी बहुत बेहतर नहीं हुई है। मानव संसाधन मंत्रालय को इस बात का संज्ञान लेना चाहिए और समावेशी शिक्षा की कल्पना को साकार बनाना चाहिए।
शैलेश मिश्र, वाराणसी
साभार हिन्दुस्तान
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