पहली प्राथमिकता बने शिक्षा में सुधार शीर्षक से लिखे अपने लेख में डॉ. भरत झुनझुनवाला ने विभिन्न आंकड़ों के माध्यम से सरकारी स्कूलों के परीक्षा परिणाम को कमतर आंका है, जो उचित नहीं है। जब हम दो वस्तुओं की तुलना करते हैं तो उसके सभी पहलुओ को देखते हैं, लेकिन यह अफसोसजनक है कि उन्होंने सिर्फ सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के अधिक वेतन और छात्र-छात्रओं के परीक्षा परिणाम को ही इसका आधार बनाया है। उन्होंने यह आंकड़ा प्रस्तुत नहीं किया कि सैकड़ों सरकारी स्कूल शिक्षक विहीन हो चुके हैं। गत कई वर्षो से माध्यमिक शिक्षकों की भर्ती ही ठप पड़ी है। उत्तर प्रदेश में शायद ही कोई ऐसा माध्यमिक स्कूल हो जहां निर्धारित मानक के अनुसार शिक्षक और छात्र अनुपात हो। विचारणीय प्रश्न है जब शिक्षक ही नहीं होंगे तो अच्छे परिणाम की उम्मीद कैसे की जा सकती है? सरकारी स्कूलों की व्यवस्था सरकार के हाथ में होती है। अतरू सरकार को चाहिए कि सर्वप्रथम वह शिक्षकों की कमी दूर करे और तत्पश्चात मूलभूत शिक्षा से संबंधित संसाधनों की उपलब्धता भी सुनिश्चित करे। देश और प्रदेश में अधिकांश जनता गरीबी रेखा से नीचे का जीवनयापन कर रही है और निजी स्कूलों की फीस आसमान छू रही है। अधिक फीस का वहन गरीब व्यक्ति नहीं कर सकता इसलिए सरकार जनता की है, जनता द्वारा चुनी जाती है तो जनता के कल्याण केलिए उसे शिक्षा पर विशेष ध्यान देते हुए समृद्ध प्रदेश की नींव रखनी चाहिए।
सर्वजीत आर्या, कन्नौज
साभार जागरण
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