आज के तेजी से बढ़ते प्रतियोगिता युग में ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चों से बेहतर प्रतिशत के अंक चाहते है। इसके लिए वे अपने बच्चों के दिल और दिमाग में बचपन से ही एक बात डाल देते हैं कि अगर तुम अपनी परीक्षाओं में अच्छे अंक लाने में असमर्थ रहे तो तुम जीवन में कुछ भी नहीं कर पाओगे। दिन-रात उनकी पढ़ाई को लेकर चिंतित रहते है और बच्चों पर भी इस बात का दबाव समय-समय पर डालते रहते हैं। जिसके कारण बहुत से बच्चे प्रतिभाशाली होते हुए भी अच्छे अंक लाने में विफल रह जाते हैं। समय के साथ ही वे तनावपूर्ण जीवन के आदी होने लगते हैं। यही कारण है कि आज 10 में से सात बच्चों की सोच भी बहुत ज्यादा सीमित हो गई है। वे ज्यादातर विषय में रुचि लेते ही नहीं। विषय का मूल ज्ञान लेने की बजाय उसे बस ऊपर-ऊपर से याद कर लेते हैं और कई हद तक अच्छे अंक लाने में समर्थ भी रहते हैं। लेकिन सफलता के मार्ग में अटक जाते है। क्या बिना मूल ज्ञान के किसी भी विषय का अध्यन करना सही होगा? एक साक्षात्कार के दौरान जब सुंदर पिछायी जी से पूछा गया कि उन्होंने बारहवीं कक्षा में कितने प्रतिशत अंक स्कोर किये तो उनका जवाब था- इतने कम की उन्हें श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में दाखिला तक न मिला। लेकिन फिर भी आज वे पहले ऐसे भारतीय हैं जो गूगल के सीईओ हैं। बच्चों को सही मार्गदर्शन की जरूरत है ना कि अच्छे अंक लाने के लिए दबाव की। आज की पीढ़ी इंटरनेट के जाल में फसी जरूर है, लेकिन हर विषय को गहराई से समझने का सामथ्र्य भी रखती है। बहुत ही जल्दी वे हर बात को समझ लेते है बस सही गलत का फर्क करने में थोड़ा विफल हो जाते हैं। जहां माता-पिता को उन्हें फर्क करना सीखाना होगा कि विषय को ऊपर से याद करने की बजाय उसका मूल ज्ञान लें, इससे उनकी रुचि भी बढ़ेगी।
मीनाक्षी ठाकुर, देहरादून
साभार जागरण
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