स्कूलों की कुव्यवस्था

हर बार सत्र शुरू होने से पहले शिक्षा में सुधार का ढोल पीटा जाता है। मगर सत्र शुरू होते ही नतीजा ढाक के तीन पात वाला हो जाता है। शिक्षा का नया सत्र शुरू हो गया है। सभी अभिभावक अनेक समस्याओं से जूझ रहे हैं। वादे, दावे सारे फेल हो रहे हैं। किंतु अति तो तब हो जाती है, जब सत्र शुरू होने के महीनों बाद तक किताबें उपलब्ध नहीं हो पातीं। बाजार में किसी भाव में सरकारी किताबें नहीं मिलतीं। नतीजतन, बच्चे और अभिभावक किताबों के लिए मारे-मारे फिरते हैं। सरकार को चाहिए कि वह सभी सरकारी किताबें बाजार में उपलब्ध कराए और एक बार परिवर्तन करके कम से कम दस साल कोर्स में कोई परिवर्तन न करे। इससे किताबें खरीदने में असमर्थ बच्चे अपने साथियों से किताबें लेकर पढ़ाई जारी रख सकेंगे।


राकेश कौशिक, सहारनपुर
साभार हिन्दुस्तान

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