परीक्षा पद्धति पर उठते सवाल

राजेंद्र प्रताप गुप्ता के आलेख ‘परीक्षा तंत्र में तब्दील होता शैक्षिक तंत्र’ में सीबीएसई परीक्षा पद्धति पर जो सवाल उठाए गए हैं, उस पर देश के शिक्षाविदों को मंथन करने की जरूरत है। नब्बे के दशक तक सर्वश्रेष्ठ माना जाने वाला यूपी बोर्ड का परीक्षा परिणाम देखने लायक होता था। जहां 60 प्रतिशत अंक पाने वाले परीक्षार्थी को प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने का सम्मान मिलता था और किसी विषय में 75 प्रतिशत अंक पाने वाले परीक्षार्थी को उस विषय में विशेष योग्यता धारित करने का गौरव प्राप्त होता था, लेकिन इस स्तर तक न पहुंच पाने वाले अन्य परीक्षार्थियों के अंदर किसी तरह की हीन भावना पैदा न हो इसके लिए 55 से 59 प्रतिशत तक अंक पाने वाले परीक्षार्थियों को गुड सेकेंड डिवीजन में उत्तीर्ण होने का सम्मान देकर उनके मनोबल को बढ़ाने का प्रयास किया जाता था, परंतु आज की सीबीएसई परीक्षा पद्धति में यदि किसी परीक्षार्थी के 90 प्रतिशत से कम अंक हैं तो उसके परीक्षा परिणाम को हेय दृष्टि से देखा जाता है। जबकि वास्तविकता यह है किसी छात्र की प्रतिभा का उसके परीक्षा प्राप्तांकों से कोई लेना देना नहीं होता। क्योंकि ऐसा देखा गया है कि अपनी स्कूली शिक्षा के दौरान कम अंक अर्जित करने वाले छात्र आगे की प्रतियोगी परीक्षाओं में अपनी विषयगत समझ के दम पर अच्छा प्रदर्शन करते हैं, वहीं स्कूली पढ़ाई के दौरान 99 प्रतिशत अंक अर्जित करने वाले छात्र इन प्रतियोगी परीक्षाओं में पिछड़ते दिखाई देते हैं। फिर सीबीएसई परीक्षा पद्धति में अकल्पनीय रूप से 500 में 499 अंक देने का उद्देश्य क्या है? इस पर सीबीएसई परीक्षा आयोजकों की जवाबदेही तय होनी ही चाहिए, अन्यथा अंकों का यह मायाजाल होनहार छात्रों के जीवन को पंगु बना देगा।



डॉ. वीपी पाण्डेय, अलीगढ़

साभार जागरण

Comments (0)

Please Login to post a comment
SiteLock
https://www.google.com/url?sa=i&url=https%3A%2F%2Fwww.ritiriwaz.com%2Fpopular-c-v-raman-quotes%2F&psig=AOvVaw0NVq7xxqoDZuJ6MBdGGxs4&ust=1677670082591000&source=images&cd=vfe&ved=0CA8QjRxqFwoTCJj4pp2OuP0CFQAAAAAdAAAAABAE