कहते हैं कि अगर भवन मजबूत और टिकाऊ बनाना हो तो सबसे पहले उसकी नींव सुरक्षित व ठीक रखनी पड़ेगी और ऐसी ही बात शिक्षा के संबंध में भी लागू होती है। अगर बच्चों की प्राथमिक शिक्षा अच्छी रहेगी तो उनका आने वाला भविष्य सुनहरा होगा। लेकिन इसे दुर्भाग्य कहें या फिर सरकारों की नाकामी उत्तराखंड बने 19 साल पूरे होने को हैं लेकिन राज्य में शिक्षा की हालत सुधर नहीं पाई है। स्थिति यह हो चुकी है कि सरकारी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ करना जैसा लगता है। हालिया शिक्षा विभाग के सर्वे के मुताबिक राज्य में 178 प्राथमिक विद्यालय ऐसे हैं जो बिना शिक्षक के चल रहे हैं। इसके अलावा 2846 प्राथमिक शिक्षकों के पद रिक्त होने के बावजूद भी इन पर नियुक्तियां नहीं हो पा रही हैं । यह आंकड़े बताते हैं कि आज कई स्कूल मिड डे मील तक ही सीमित रह चुके हैं। सबसे ज्यादा बुरा हाल पहाड़ के गांवों का है। यहां के सभी बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं लेकिन प्र्याप्त शिक्षक न होने से पढ़ाई चैपट है। कहीं अंग्रेजी का शिक्षक नहीं तो कहीं गणित का, कहीं हिंदी का शिक्षक नहीं तो कहीं विज्ञान का और कहीं-कहीं तो एक ही टीचर सभी विषयों का मास्टर बना है। स्कूलों की समय-समय पर समुचित मॉनिटरिंग न होने से जहां शिक्षक पूरे हैं वहां भी पढ़ाई का स्तर अच्छा नहीं है । ऐसे में सवाल यह उठता है कि कब तक सरकार ऐसा चलने देगी। अगर जल्द इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाया गया तो प्रदेश को बड़ी क्षति उठानी पड़ेगी ।
सुबोध नौटियाल, रुद्रप्रयाग
साभार जागरण
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