उत्तराखंड के सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में घटती छात्रसंख्या, दूरदराज व दुर्गम क्षेत्रों में शिक्षकों की कमी और वहीं सुगम क्षेत्रों में तैनाती की बढ़ती होड़ की तस्वीर चैंकाने वाली है। हैरत की बात ये है कि राज्य में 2521 यानी करीब एक चैथाई प्राथमिक विद्यालय सिर्फ एक शिक्षक के भरोसे संचालित किए जा रहे हैं। 71 विद्यालय ऐसे हैं, जहां एक भी छात्र नहीं है। इनमें सर्वाधिक 54 विद्यालय नैनीताल जिले में हैं। 264 विद्यालयों में छात्रसंख्या एक या दो तक सिमटी है। 178 विद्यालयों में एक भी शिक्षक नहीं है। पर्वतीय जिलों में एकल शिक्षक विद्यालयों की संख्या सबसे ज्यादा है तो दूसरी ओर सुगम व मैदानी जिलों में मानकों से ज्यादा शिक्षक कार्यरत हैं। शिक्षा को लेकर ये दुरावस्था शायद ही कहीं ओर नजर आए। साक्षरता दर में देश के अव्वल राज्यों में शुमार उत्तराखंड में सरकारी प्राथमिक शिक्षा की हालत तंत्र की पोल खोल रही है। पर्वतीय क्षेत्रों में विकास की धीमी रफ्तार और पिछड़ेपन की दुहाई देकर 18 साल पहले जिस राज्य की स्थापना की गई, वह दो दशकों की ओर कदम बढ़ाने के बावजूद प्रारंभिक शिक्षा की हालात सुधारने में नाकाम साबित हो रहा है। यह चिंताजनक स्थिति है। राज्य में शिक्षा की बुनियाद कमजोर धरातल पर रखी जा रही है। इसका बुरा असर प्राथमिक विद्यालयों से छात्रों और अभिभावकों के मोहभंग के रूप में सामने है। शिक्षा की जरूरी आवश्यकता पूरा करने को दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित किए गए विद्यालय अपने लक्ष्य का संधान नहीं कर सके हैं। अब तेजी से घटती छात्रसंख्या से विद्यालयों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ रहा है। वर्षो से शिक्षकों की कमी रहने से विद्यालयों में छात्रसंख्या का घटना स्वाभाविक है। राज्य के पर्वतीय जिलों में पलायन के लिए स्तरीय शिक्षा की कमी को बड़ा कारक माना गया है। एक ओर पलायन रोकने की बात कही जा रही है, दूसरी ओर नीतिगत स्तर पर ढुलमुलपन बरकरार है। इस सबके बीच एक बार फिर से प्राथमिक शिक्षकों का जिला कैडर खत्म कर स्कूल कैडर लागू करने पर मंथन किया जा रहा है। स्कूल कैडर होने पर शिक्षकों के लिए विद्यालयों में ही टिकना अनिवार्य हो जाएगा। इससे पहले प्राथमिक शिक्षकों का जिला कैडर खत्म कर ब्लॉक कैडर लागू किया गया था, लेकिन कुछ अरसे बाद ही इसे खत्म कर दोबारा जिला कैडर किया गया है। ब्लॉक कैडर का जितना अपेक्षित लाभ मिलना चाहिए था, नहीं मिल सका। स्कूल कैडर मौजूदा समस्या का समाधान तब ही माना जाएगा, जब सरकार मजबूत इच्छाशक्ति के साथ यह फैसला ले और फिर इसे लागू भी करे।
साभार जागरण
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