भारत के भविष्य का आधार बने नई शिक्षा नीति शीर्षक से अपने लेख में सृजन पाल सिंह ने मोदी सरकार की बहुप्रतीक्षित नई शिक्षा नीति को लेकर जो मुद्दे उठाए हैं, वे विशाल आबादी वाले विकासशील भारत के लिए तब तक अनुपयोगी हैं जब तक भारत की शिक्षा को गुणवत्तापरक नहीं बनाया जाता। प्राथमिक शिक्षा गुणवत्तापरक शिक्षा की नींव है, यह नींव जितनी सुदृढ़ होगी आगे की शिक्षा उतनी ही मजबूत होगी, क्योंकि यह एक तथ्य है कि इस देश की कमजोर प्राथमिक शिक्षा आगे की माध्यमिक और उच्च शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित कर रही है। भारत की उच्च शिक्षा को सुदृढ़ बनाने की बात करने वाली नई शिक्षा नीति में इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया गया है। शायद इसीलिए आज कथित रूप से शिक्षित बेरोजगारों की भीड़ बढ़ती जा रही है। उप्र जैसे बड़े राज्य में हाईस्कूल-इंटर की बोर्ड परीक्षाओं में नकल का बोलबाला रहता है। इस स्तर पर नकलविहीन परीक्षा कराना लगभग असंभव सा हो गया है। नकल का यह रोग उच्च शिक्षा में भी व्याप्त है। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि पहले शिक्षा की नींव मानी जाने वाली प्राथमिक शिक्षा को चुस्त-दुरुस्त किया जाए। प्राथमिक शिक्षा के शिक्षकों को पहले की मॉडल स्कूल पद्धति के अनुरूप कड़े मानकों के आधार पर त्रिवर्षीय उच्च स्तरीय प्रशिक्षण देकर उसी जिले के प्राथमिक स्कूलों में नियुक्त किया जाए जहां के वे मूल निवासी हैं, ताकि वे अपने अध्यापकीय दायित्व को ठीक से निर्वाहित कर सकें।
डॉ. वीपी पाण्डेय, अलीगढ़
साभार जागरण
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