उत्तराखंड में शिक्षा खासकर सरकारी व्यवस्था का हाल बेहद चिंताजनक हैं। इसकी पोल हाल ही में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को देहरादून के त्यूणी क्षेत्र की प्राइमरी की छात्र द्वारा भेजी गई पाती ने खोली है। उन्होंने अपने स्कूल की जर्जर हालत को दुरुस्त करने की मांग की। हालांकि सीएम रावत ने तुरंत इसका संज्ञान भी लिया और जिलाधिकारी को तत्काल समस्या का समाधान करने के आदेश भी दिया। लेकिन सवाल ये उठता है कि अधिकारी इस दिशा में क्यों संवेदनशील नहीं हैं। क्या सिर्फ भारी-भरकम तनख्वाह लेना इनकी फितरत बन चुका है शायद हां, अगर ऐसा न होता तो इन नाकारा अधिकारियों पर कार्यवाही जरूर होती। आज राज्य में कई ऐसे सरकारी विद्यालय हैं जहां पढ़ाना और पढ़ना किसी खतरे से कम नहीं है । बारिश में स्कूल भवन कब भरभराकर गिर जाएं कहा नहीं जा सकता । इन स्कूलों में न तो बाउंड्री वाल हैं और न ही सुरक्षा के इंतजाम इसके बावजूद इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है । सबसे ज्यादा बुरा हाल पहाड़ के गांवों का है। यहां के सभी बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं लेकिन प्र्याप्त शिक्षक न होने से पढ़ाई चैपट है। कहीं अंग्रेजी का शिक्षक नहीं तो कहीं गणित का, कहीं हिंदी का शिक्षक नहीं तो कहीं विज्ञान का और कहीं-कहीं तो एक ही टीचर सभी विषयों का मास्टर बना है। स्कूलों की समय-समय पर समुचित मॉनिटरिंग न होने से जहां शिक्षक पूरे हैं वहां भी पढ़ाई का स्तर अच्छा नहीं है। इसके अलावा शहरों में निजी स्कूलों की मनमानी किसी से छिपी नहीं है। फीस बढ़ोत्तरी के साथ-साथ आए दिन लिए जा रहे तमाम तरह के शुल्क से अभिभावक परेशान हैं।
विवेक चौहान, देहरादून
साभार जागरण
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