अच्छे मार्क्स नहीं अच्छी जिंदगी

बचपन से जवानी तक माता-पिता से लेकर स्कूल के शिक्षकों से शिक्षा लेने तक का सफर अगर जिंदगी को सही मायनों में जीना सिखा दे तो शायद ही कोई ऐसा होगा जो हार को जीत में न बदल पाए। माता-पिता से मिली शिक्षा के बाद स्कूल में बच्चा अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए शिक्षा प्राप्त करता है। अमूमन माता-पिता व शिक्षा का बाजारीकरण कर रहे नामी स्कूल बच्चों को केवल अच्छे मार्क्स के उद्देश्य से तैयार करते है। स्कूल का लक्ष्य बच्चों को केवल अच्छे कॉलेज में दाखिला दिलवाने तक का रहता है तो वहीं माता-पिता को बच्चों के अच्छे अंक से मतलब होता है। बहुत ही सरलता के साथ इस तरह से बच्चों के अंदर की काबिलियत को अनदेखा कर आज के समय में खत्म किया जा रहा है, जो बेहद गलत है। बच्चे अपनी जिंदगी के प्रति क्या सोच रखते, समाज कल्याण के लिए क्या योगदान देना चाहते है या देने में सक्षम है इन सभी से शिक्षा के ठेकेदारों को कोई मतलब नहीं है। वे केवल अपने स्कूल को एक बिजनेस के अनुसार आगे बढ़ाये जा रहे हैं। लिहाजा बच्चे बेबुनियाद की रेस में भाग लेकर अपनी काबिलियत को समझ पाने में असमर्थ हैं। हमारे देश के एजुकेशन सिस्टम में काफी बदलाव की जरूरत है। समय रहते आवश्यक बदलाव लाने जरूरी है। बच्चों पर नंबरों को लेकर इतना दबाव बनाया जा रहा है कि अगर गलती से किसी बच्चे के नंबर कम आ जाएं तो उसका जीना मुश्किल हो जाता है। कई बार इसी के चलते बच्चे अपनी जीवन लीला ही समाप्त कर लेते हैं। क्या मासूमों पर इतना दबाव डालना सही है, क्या शिक्षा अर्थ यही है। शायद नहीं, शिक्षा का अर्थ बच्चों को समाज में जीना सिखाना है।


मीनाक्षी ठाकुर, देहरादून
साभार जागरण

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