आज पूर्व प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक निजी शिक्षण संस्थाएं बेलगाम बढ़ती जा रही है। इनमें से अधिकांश प्रतिष्ठित व्यवसाय की तरह चल रही हैं, क्योंकि इनके मालिक नवधनाढ्य और राजनीतिक रसूखदार लोग हैं। वे ऐसी संस्कृति विकसित कर रहे हैं, जिसमें शिक्षा एक व्यवसाय बन गई है। इन संस्थानों में फीसद तो मनमाने तरीके से वसूली जाती है, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता का ख्याल नहीं रखा जाता। इनके लिए प्रभावी नियामक और निगरानी का पूरी तरह अभाव है। बेहतर सरकारी संस्थानों की कमी के कारण विधार्थी मजबूरी में निजी संस्थानों का रुख करते हैं। इसलिए जरूरी है कि सरकारी शिक्षण संस्थानों को समर्थ बनाया जाए और निजीकरण की चपेट में जाती शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त की जाए। ज्ञान और कौशल के अभाव में हम अयोग्य बेरोजगारों को फौज खड़ी कर रहे हैं।
सत्य प्रकाश, लखीमपुर खीरी
साभार हिन्दुस्तान
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