हिन्दी के प्रति अनावश्यक दुराग्रह शीर्षक से लिखे अपने लेख में प्रोफेसर निरंजन कुमार ने नई शिक्षा नीति में हिन्दी की अनिवार्यता को लेकर उठे विवाद को अनुचित एवं अनावश्यक ठहराया है। सभी जानते हैं कि हिन्दी हमारे देश की सबसे बड़ी संपर्क भाषा है। ऐसे में हिन्दी को अनिवार्य कर दिया जाए तो भाषा के स्तर पर राष्ट्रीय एकता ही स्थापित होगी। वहीं अंतरराष्ट्रीय भाषा अंग्रेजी होने के नाते उसे भी नई शिक्षा नीति में अहम स्थान मिलना ही चाहिए। भाषा में एकरूपता होने से राष्ट्रीय एकीकरण में मदद मिलती है। अब चूंकि युवा रोजगार, व्यापार, शिक्षा एवं पर्यटन के लिए एक राज्य से दूसरे राज्यों में जा रहे हैं तो भाषा ही एक ऐसा माध्यम होती है जो एक-दूसरे को जोड़ने में सहायक होती है। अतरू पूरे देश में एक भाषा तो ऐसी होनी ही चाहिए जो लोगों को जोड़ने का कार्य करे और वह हिन्दी से बेहतर कोई दूसरी भाषा नहीं हो सकती। हिन्दी की अनिवार्यता से किसी तरह की कोई विषमता नजर नहीं आती और इसलिए इसे राजनीतिक तूल देना उचित प्रतीत नहीं होता। उम्मीद है कि नई शिक्षा नीति देश को आगे ले जाने एवं राष्ट्रीय एकता स्थापित करने में अहम भूमिका निभाएगी।
सर्वजीत आर्या, कन्नौज, उत्तर प्रदेश
साभार जागरण
Comments (0)