देश में नई शिक्षा नीति बनाने की बात तो खूब होती है, लेकिन अक्सर देखा गया है कि स्नातक या उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद भी बच्चे उतने योग्य नहीं बन पाते कि नौकरी में उनकी शिक्षा काम आए। यहां तक कि वे अगर किसी सरकारी या निजी संस्थान का आवेदन पत्र भरते हैं, तो उन्हें यह तक पता नहीं होता कि किस प्रकार से आवेदन पत्र भरना है। इसीलिए किताबी शिक्षा के साथ-साथ यदि बच्चों को व्यावहारिक शिक्षा भी दी जाए, तो उनकी काफी मदद हो जाएगी। ऐसा किया जाना अनिवार्य है, क्योंकि देश में बेरोजगारी दर लगातार बढ़ रही है और हर हाथ को रोजगार वक्त की जरूरत है।
विजय कुमार धनिया, नई दिल्ली।
साभार हिन्दुस्तान
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