अपने देश की शिक्षा व्यवस्था का जब हम चिंतन करते हैं, तो पाते हैं कि देश की शिक्षा का लक्ष्य तय नहीं है। शिक्षा का अर्थ सिर्फ किताबी ज्ञान मात्र नहीं है, शिक्षा का अर्थ है, चरित्र निर्माण, व्यक्तित्व निर्माण। शिक्षा का लक्ष्य निर्धारित होना चाहिए। शिक्षा ऐसी जिसमें हमारे प्राचीन ज्ञान और आधुनिक ज्ञान का समन्वय हो। शिक्षा के मूल्य निर्धारित हो। मातृभाषा में हो। शिक्षा व्यापार के लिए नहीं बल्कि सेवा के लिए हो। शिक्षा में समग्रता का चिंतन हो। इन सारी बातों को ध्यान में रखकर शिक्षा की नीति और पाठ्यक्रम तैयार किया जाना चाहिए। शिक्षा को लेकर हमें कुछ बातें गांठ बांध लेनी चाहिए। शिक्षा ऐसी हो जिसमें हमें मूल्य आधारित जीवन जीने की प्रेरणा मिले, जो राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों से हमारा परिचय कराए, जिसमें व्यक्तित्व का विकास हो तथा जिसमें हमें देश के समक्ष खड़ी चुनौतियों से टकराने और समाधान को तलाशने की प्रेरणा मिले। मुंशी प्रेमचंद ने भी कहा था जो शिक्षा प्रणाली लड़कियों और लड़को को समाजिक बुराइयों और अन्याय के खिलाफ लड़ना नहीं सिखाती, उस शिक्षा प्रणाली में जरूर कोई न कोई बुनियादी खराबी है। सरकार को इस तरफ कुछ कदम उठाने चाहिए।
आशीष रावत, रुड़की
साभार जागरण
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