शिक्षकों की कमी और घटती छात्र संख्या के कारण देशभर में सरकारी स्कूलों के बंद होने का सिलसिला जारी है। इसे पब्लिक स्कूलों की बढ़ती धाक कहें या फिर सरकारी स्कूलों की गिरती साख, अभिभावक सरकारी शिक्षा से मुंह मोड़ते जा रहे हैं। यह वाकई दयनीय है कि आर्थिक रूप से कमजोर लोग ही अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने को मजबूर हैं। जबकि, आर्थिक रूप से संपन्न लोग मोटी रकम खर्च कर बच्चों को पब्लिक स्कूलों में भेज रहे हैं। इसके लिए सरकारों को विद्यालयों को सुविधापूर्ण बनाना होगा। साथ ही शिक्षकों को इतना सक्षम बनाना होगा कि लोग अपने बच्चों के दाखिले सरकारी विद्यालयों में कराने को मजबूर हों। इस दिशा में देखें तो दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार अच्छा काम कर रही है। जबकि, बाकी राज्यों में सरकारी शिक्षा महज खानापूर्ति बनकर ही रह गई है। इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी कि राज्य की बागडोर संभालने के बावजूद सरकारें वहां की जनता को शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली-पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं भी मुहैया नहीं करा पा रही है।
शालिनी चौहान, रेहड़वा
साभार जागरण
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