फीस एक्ट अच्छी पहल

उत्तराखंड में देर से सही, राज्य सरकार को यह तो एहसास हुआ कि निजी स्कूल जनता की जेब पर लगातार बोझ बढ़ा रहे हैं। जैसा कि सरकार ने इरादा जाहिर किया है कि निजी स्कूलों के लिए शुल्क ढांचा तय किया जाएगा। इसके लिए एक्ट का मसौदा भी तैयार कर लिया गया है, अगले महीने इसे कैबिनेट में रखा जा रहा है। सरकार दावा कर रही है कि प्री- प्राइमरी से सीनियर सेकेंड्री कक्षाओं तक का अधिकतम शुल्क तय किया जाएगा। फीस एक्ट में नियमों का उल्लंघन करने पर एक लाख से पांच लाख रुपये तक अर्थदंड और मान्यता रद करने तक का प्रावधान भी किया जा रहा है। निरूसंदेह इसे सकारात्मक रूप में लिया जाना चाहिए। निजी स्कूलों की मनमानी किसी से छिपी नहीं है। मोटी फीस के साथ ही यूनिफार्म, कॉपी-किताब और दूसरी मदों के जरिये अभिभावकों की जेब पर बोझ बढ़ाया जा रहा है। उनके सामने खुलकर विरोध न कर पाने की मजबूरी है। मनमानी का आलम यह कि अगर कोई अभिभावक ऐसा करता है तो स्कूल उनके बच्चे के हाथ में टीसी पकड़ाने से भी गुरेज नहीं करते। खैर, अब सरकार सख्त तेवर दिखाती नजर आ रही है, लेकिन पिछला ट्रेक रेकार्ड कई सवाल खड़े कर रहा है। बात शुल्क की ही नहीं, राज्य सरकार की तमाम अन्य व्यवस्थाओं से निजी स्कूल हमेशा किनाराकशी करते आए हैं। अनापत्ति प्रमाण पत्र की शर्तो का खुल्लमखुला उल्लंघन हो रहा है, लेकिन सरकारी कारिंदों ने कभी भी इन स्कूलों की देहरी लांघने की हिम्मत नहीं जुटाई। सूरतेहाल यह सवाल अपनी जगह खड़ा है कि निजी स्कूलों का ढ़र्रा सुधर पाएगा अथवा नहीं। सरकार और शिक्षा महकमा अपने दायित्वों के प्रति ईमानदार और सजग रहेंगे, इसमें भी शक की गुंजायश बरकरार है। अगर सरकार सोच रही है कि कानून बना देने से सब कुछ स्वतरू ही सुधर जाएगा तो यह उसकी गलतफहमी है। अगर ऐसा होता तो सरकार को इस तरह का कानून पर विचार करने की जरूरत ही नहीं होती। क्योंकि वर्तमान में जो व्यवस्था है, उसमें भी निजी स्कूलों की जवाबदेही तय है, परंतु इस पर न तो स्कूलों ने अमल किया और न ही जिम्मेदार इसको लेकर फिक्रमंद दिखे। नतीजा सभी के सामने है। सरकार वाकई में अभिभावकों की जेब पर बोझ कम करना चाहती है तो सरकार को कानून का पालन कराना भी सीखना होगा। मॉनिटरिंग के पारंपरिक तौर-तरीके को छोड़ना होगा। अगर ऐसा नहीं कर पाई तो फीस कानून का भी वही हश्र होगा, जो शिक्षा के अधिकार (आरटीई) का इन स्कूलों में हुआ है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार इस बार नई सोच के साथ कदम बढ़ाएगी।


साभार जागरण

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