सरकार के लाख दावों के बावजूद निजी स्कूलों की मनमानी पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। यहां तक कि कुछ समय पहले उच्च न्यायालय ने भी इसका संज्ञान लेते हुए दिशा-निर्देश जारी किए, लेकिन हालात में सुधार नहीं हो पाया। पिछले दिनों राजधानी देहरादून में सुर्खियां बनीं एक घटना अभिभावकों की चिंता का सबब बन गई। स्कूल बस की खिड़की से एक तीन साल का मासूम गिरकर घायल हो गया। परिजनों की पहल के बाद मामला दर्ज हुआ तो इसके बाद आरटीओ और यातायात पुलिस के अफसर भी एक बार फिर नींद से जाग गए हैं। कार्रवाई की बात की जा रही है, लेकिन कुछ सवाल भी फिजा में तैरने लगे हैं। सबसे बड़ा सवाल तो बच्चों की सुरक्षा को लेकर ही है। राजधानी देहरादून के पास एक स्कूल में छात्र के शोषण का मामला सामने आ चुका है। स्कूल बसों में बच्चों की सुरक्षा को लेकर हाईकोर्ट ने गाइड लाइन दी। इसके बाद शासन और प्रशासन हरकत में आए। तब कहा गया था कि सभी स्कूली बसें पीले रंग में रंगी जाएंगी। खिड़कियों पर जाली लगानी होगी। क्षमता से अधिक बच्चों को नहीं भरा जाएगा। कुछ समय तो सब ठीक-ठाक चला, लेकिन वक्त बीतने के साथ ही सबकुछ हवा हो गया। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि फीस के समेत विभिन्न मदों में अभिभावकों से प्रतिमाह हजारों रुपये वसूलने वाले ज्यादातर स्कूलों के पास छात्रों की तादाद के हिसाब से पर्याप्त संख्या में बसे ही नहीं हैं। ऐसे में स्कूल प्रबंधन बसों को कांट्रेक्ट पर लेकर निश्चिंत हो जाता है। सुरक्षा के मानक न स्कूल बसों में पूरे किए जा रहे हैं और न ही ऑटो में। सबसे बड़ा प्रश्न तो उन एजेसियों पर है जो वक्त के साथ सबकुछ भुला देने की आदी हो चुकी हैं। सवाल यह भी है कि निजी स्कूल हर बार मनमानी पर क्यों उतारु हो जाते हैं। मसलन, एनसीईआरटी की पुस्तकें लागू करने का मामला ही लें। आदेशों के बावजूद यह पूरी तरह से लागू नहीं हो सका। जिन स्कूलों ने इसे लागू करने का दावा किया भी, उन्होंने इसका तोड़ भी निकाल डाला। शिक्षा की गुणवत्ता के नाम पर अभिभावकों पर दबाव बनाने का कार्य आज भी जारी है। इस सबके बावजूद शायद ही ऐसा कोई उदाहरण सामने हो जब इन स्कूलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई कर अभिभावकों को सकारात्मक संदेश दिया गया हो। अब वक्त आ गया है कि सरकार, शासन और प्रशासन संवेदनशीलता का परिचय देते हुए मामले में कदम उठाए। बच्चों की सुरक्षा और सुविधाओं से खिलवाड़ करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।
साभार जागरण
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