उत्तराखण्ड में स्किल इंडिया को प्रोत्साहित करने का दावा सरकार भले ही करे, लेकिन हकीकत में इसे लेकर सरकारी तंत्र गंभीर नहीं है। राजकीय माध्यमिक विद्यालयों के लिए व्यावसायिक शिक्षा योजना इसका बड़ा उदाहरण है। इस योजना के तहत राज्य में करीब दस हजार विधार्थिंयों को व्यावसायिक शिक्षा दी जाती है। वर्षों से इसकी कवायद चल रही है, लेकिन ये अंजाम तक नहीं पहुंच रही। नए शैक्षिक सत्र में भी इसे शुरू किया जा सकेगा, इसे लेकर सरकार और शिक्षा महकमे में इच्छाशक्ति की कमी बनी हुई है। कुल नौ ट्रेड में 45 काॅलेजों में दो-दो ट्रेड और शेष में एक-एक ट्रेड़ शुरू किया जाएंगे। कृषि, ऑटोमोबाइल, ब्यूटी एंड़ वेलनेस, इलेक्ट्रानिक एंड़ हार्डवेयर, आइटी, मल्टी स्किलिंग, प्लंबर, रिटेल, टूरिज्म एंड हास्पिटेलिटी ट्रेड़ के लिए 225 लैबोरेट्री बनेंगी और इन ट्रेड का प्रशिक्षण देने को 255 शिक्षकों की नियुक्ति भी कि जाएगी। इस कार्य के लिए व्यावसायिक पार्टनर का चयन किया जाना है। पार्टनर के चयन की प्रक्रिया तकनीकी अड़चनों में फंसकर रह गई है। सरकार ने तय किया है कि ई-टेंडरिंग के माध्यम का चयन होगा। ई-टेंडरिंग के माध्यम से यह कार्य बीते जनवरी माह में पूरा होना चाहिए था। ऐसा नहीं हो सका। चार महिने बाद अब ई-टेंडरिंग के लिए निर्वाचन आयोग से गुहार लगाई है। लोकसभा चुनाव आचार संहिता लागू होने की वजह से इस मामले में शिक्षा महकमा अपने हाथ बंधे हुए महसूस कर रहा है। अब आयोग से अनुमति मिलने का इंतजार किया जा रहा है। व्यावसायिक शिक्षा योजना में ये लेटलतीफी महकमे के कामकाज में पेशवर नजरिए के अभाव को बयां कर रही है। इसी वजह से बीते चार वर्षों से योजना लटकी है। प्रदेश में भाजपा सरकार भी दो वर्ष पूरे कर चुकी है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट स्क्लि इंडिया का अहम हिस्सा व्यावसायिक शिक्षा को लेकर ढुलमुल रवैया बरकरार है। उक्त योजना जितना जल्द शुरू होगी, छात्र-छात्राओं का इसका तेजी से लाभ मिल सकेगा। साथ ही योजना फायदेमंद हुई तो इसे अधिक संख्या में राजकीय माध्यमिक स्कूलों में लागू करने की राह भी प्रशस्त होगी। बेहतर यही होगा कि सरकार और शिक्षा महकमा इस योजना के क्रियान्वयन के लिए तेजी से कदम बढ़ाएं। दुर्गम क्षेत्रों में सरकारी स्कूलों के माध्यम से युवाओं के कौशल विकास की मुहिम उम्मीद की नई रोशनी बन सकती है।
साभार जागरण
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