आजकल पूरे देश में लोकसभा चुनाव को लेकर खुमारी छाई हुई है। तमाम सरकारें और प्रशासनिक इकाइयां इसकी तैयारियों को लेकर व्यस्त दिखाई दे रही हैं। वहीं दूसरी ओर मौके की नजाकत देखते हुए प्राइवेट स्कूल धड़ल्ले से मनमानी में जुटे गए हैं। दाखिले के इस दौर में ये स्कूल जमकर चांदी काट रहे हैं। स्कूल फीस तो बढ़ाई ही जा रही है, साथ ही ड्रेस और अन्य सामग्रियों के नाम पर अभिभावकों का शोषण किया जा रहा है। अगर कोई अभिभावक आवाज उठा भी ले तो उसे अन्य स्कूल में दाखिले की नसीहत दी जाती है। सरकारी स्कूलों की लचर व्यवस्था से तंग आकर लोग अपने बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए प्राइवेट स्कूलों का रुख कर रहे हैं, लेकिन यहां उनके खून पसीने की कमाई पर डाका डाला जा रहा है। गौरतलब है कि उत्तराखंड सरकार ने आम लोगों की सुविधा और कम खर्चे में हर बच्चे तक शिक्षा का प्रकाश पहुंचाने के लिए स्कूलों में एनसीईआरटी की पुस्तकों को अनिवार्य कर दिया है, लेकिन निजी स्कूलों की ओर से सरकार की इस पहल को ठेंगा दिखाया जा रहा है। एनसीईआरटी की किताबों के अलावा अभिभावकों से अन्य किताबें भी खरीदने को कहा जा रहा है, जिससे लोगों में जबरदस्त गुस्सा है। हैरानी वाली बात तो ये है कि सरकार आम चुनाव में इतनी मशगूल हो गई है कि उसे आम आदमी की इस समस्या की ओर सुध लेने की फुर्सत ही नहीं है। सवाल ये उठता है कि क्या ये मुद्दा नहीं है? शायद नहीं, अगर होता तो आज नेताजी इसको लेकर भी बात करते। चुनाव को देखते हुए सभी नेता बड़े-बड़े वायदे कर रहे हैं, लेकिन सामने खड़ी परेशानी किसी को नहीं दिख रही है।
उमेश पंत, देहरादून
साभार जागरण
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